क्यों मनाई जाती है भाई दूज, क्यों होती है यम की पूजा इस दिन, जानें पौराणिक मान्यताएं

  • कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है भाई दूज, मातृ द्वितीया और यम द्वितीया केे नाम से भी जाना जाता है इस पर्व को

News_Breathe. दीपावली के साथ ही भाई-बहन के पावन प्रेम की प्रतीक भाई द्वितीया का अपना विशेष महत्व है. बहनें इस पर्व पर भाई की मंगल कामना कर अपने को धन्य मानती हैं. उत्तर और मध्य भारत में यह पर्व मातृ द्वितीया भैया दूज के नाम से जाना जाता है, पूर्व में भाई-कोटा, पश्चिम में भाईबीज और भाऊबीज कहलाता है. इस पर्व पर बहनें प्रायः गोबर से मांडना बनाती हैं, उसमें चावल और हल्दी से चित्र बनाती हैं तथा सुपारी फल, पान, रोली, धूप, मिष्ठान आदि रखती हैं, दीप जलाती हैं. इस दिन यम द्वितीया की कथा भी सुनी जाती है.

भाई दूज से जुड़ी पौराणिक कथाएं

भविष्य पुराण में वर्णित यह द्वितीया की कथा सर्वमान्य एवं सबसे महत्वपूर्ण है. काल देवता यमराज की लाडली बहन का नाम यामी (यमुना) है. यामी अपने प्रिय भाई यमराज को बार-बार अपने घर आने के लिए संदेश भेजती थी और निराशा ही पाती थी. एक दिन यमराज जी अचानक अपनी बहन के घर जा पहुंचे. यमुना उन्हें द्वार पर देखकर हर्ष-विभोर हो उठीं. अपने घर में उसने भाई का जी भरकर आदर सत्कार किया. उन्हें मंगल-टीका लगाया तथा अपने हाथों से बना हुआ स्वादिष्ट भोजन कराया.

यमराज जी बहन के स्नेह को देखकर प्रसन्न हो गए और उन्होंने बहन से कुछ मांगने का आग्रह किया. यामी भाई के आगमन से ही सब कुछ पा चुकी थीं. भाई के आग्रह पर बस एक ही वरदान मांगा था और वह वरदान था- आज का दिन भाई–बहन के स्नेह का पर्व बनाकर सदा स्मरणीय रहे. आज के बाद जो भी बहन अपने भाई के माथे पर तिलक करे उसे यमराज का भय न रहे क्योंकि उसकी बहन का प्यार और प्रार्थना भाई की रक्षा करेगा. यमराज ने यामी को ये वरदान दिया और उस दिन से भाई दूज का त्योहार मनाया जाने लगा.

उस दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया थी. तब से यह दिन भाई बहन के प्रेम का पर्व बन गया. इस दिन प्रत्येक बहन अपनी सामर्थ्य के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपने भाई को खिलाती हैं और भाई उसे भेंट अर्पित करता है, लोक धारणा है कि बहन के घर भोजन करने से भाई को यम बाधा नहीं सताती तथा उसकी कीर्ति एवं समृद्धि में वृद्धि होती है.

इस पर्व से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है. एक कथा में निर्धन भाई, भैया दूज को टीका के लिए बहन के घर जाता है. रास्ते में उसे शेर, नदी, पर्वत सभी रोकते हैं और कहते हैं कि तुम्हारी माता ने तुम्हारे जन्म की कामना कर हमें चढ़ावा चढ़ाने की मनौती मांगी थी, जो आज तक पूरी नहीं हुई. अतः हम तुम्हारी ही बलि लेंगे. उस निर्धन युवक ने कहा कि आज भाई दूज है और मेरी बहिन घर पर मेरा इंतजार कर रही है. जब बहन से टीका लगाकर आऊंगा तब तुम मेरी बलि ले लेना. भाई-बहन के घर पहुंचा, संपन्न बहन उसे देखकर निहाल हो गई.

बहन ने उसका स्वागत किया. टीका किया और भोजन कराया साथ ही यम देवता से उसके लिए जीवन का वर मांगा. बहन का मंगल टीका उसके मस्तिष्क पर शोभित था. अतः इस बार न उसे नदी ने रोका, न पहाड़ ने. क्योंकि बहन ने नदी, पहाड़, वनराज और यम महाराज आदि सभी को यथोचित पूजा से संतुष्ट किया. उन सभी ने उसे अनेक आशीर्वाद दिए. इस लोक कथा के अनुसार तब से यह पर्व बहन का भाई के प्रति त्याग के रूप में भी मनाया जाता है.