‘द ग्रैंड ओल्ड’ पार्टी कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल को खोने के बाद क्या होगा कांग्रेस का?
- पर्दे के पीछे की राजनीति करने के लिए जाने जाते थे अहमद पटेल, सोनिया गांधी के बाद सबसे पावरफुल नेता, उनकी जगह लेना हर किसी के लिए मुश्किल
NewsBreatheTeam. देश की ‘द ग्रैंड ओल्ड’ पार्टी कांग्रेस के रणनीतिकार और चाणक्य माने जाने वाले अहमद पटेल का आज सुबह निधन हो गया. वे 71 वर्ष के थे. पिछले दो दशकों से उन्हें पार्टी की रीढ़ माना जाता था. वो अहमद पटेल ही थे जिन्होंने राजस्थान के क्राइसिस मैनेजमेंट के समय सचिन पायलट को पार्टी में बने रहने के लिए ही मना लिया. वहीं पार्टी के अंसतुष्ट जी-23 नेताओं के ‘लेटर बम’ को डिफ्यूज करने में उन्होंने जो भूमिका निभाई. वो रीढ़ अब टूट चुकी है जिसका सबसे ज्यादा गम सोनिया गांधी को है क्योंकि सोनिया गांधी की सभी रणनीति पर्दे के पीछे से अहमद पटेल ही देखा करते थे. देखा जाए तो सोनिया गांधी के बाद पार्टी के सबसे पावरफुल नेता अहमद पटेल ही थे जिनकी खाली जगह भर पाना मुश्किल ही नहीं, कांग्रेस के लिए नामुमकिन होगा.
अहमद भाई या एपी के नाम से जाने जाने वाले अहमद पटेल ने गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम किया. राजनीतिक करियर की शुरुआत में इंदिरा गांधी ने उनके हुनर को पहचाना और उनको लोकसभा के सियासी रण में उतारा. अपनी उपयोगिता और राजनीतिक कौशल की वजह से अहमद पटेल पार्टी में सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ते रहे.
ये अहमद पटेल का स्वभाव रहा कि वे सुर्खियों से दूर रह कर पर्दे के पीछे से अपने काम को बखूबी अंजाम देते रहे. यूपीए के अस्तित्व में आने के बाद अहमद पटेल ने सोनिया गांधी के लेफ्टिनेंट के तौर पर कमान संभाली. खुद लाइमलाइट से दूर रहना पसंद करने वाले अहमद पटेल, मीडिया में क्या छप रहा है उस पर पैनी नजर रखते थे. एक किस्सा मशहूर है कि कैसे अहमद पटेल ने एक पत्रकार का 6 महीने तक फोन नहीं उठाया. जब वह किसी बैठक के बाद उस पत्रकार से मिले तो अहमद पटेल ने याद दिलाया कि कैसे पत्रकार ने अपनी रिपोर्ट में उनको गलत ढंग से कोट किया था. अहमद पटेल ज़्यादा बोलना पसंद नहीं करते थे लेकिन अपनी बात से पलटते भी नहीं थे. पार्टी में क्या चल रहा है उनसे बेहतर कोई नहीं जानता था, क्योंकि वही पार्टी के सूत्रधार हुआ करते थे.
केंद्र में यूपीए के शासन के दौरान पार्टी और सरकार के दो पावर सेंटर को लेकर मीडिया में बहुत चर्चा रहती थी. नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के सुझाव और केंद्र सरकार की योजना के बीच में समन्वय और तालमेल बैठाने में अहमद पटेल की अहम भूमिका रही. अहमद पटेल ‘10 जनपथ’ का सुरक्षा कवच थे. यूपीए सरकार की गलतियों का ठीकरा कांग्रेस हाईकमान पर ना फूटे इसके लिए अहमद पटेल की कोशिश हमेशा हमलों को डिफ्लेक्ट करने की रहती.
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2009 में यूपीए-2 के तौर पर कांग्रेस की सत्ता में वापसी में सोनिया गांधी के सारथी के रूप में अहमद पटेल ने अहम योगदान दिया. लेकिन पटेल का स्टाइल था कि ना तो वह कभी कैमरे पर आते थे और ना ही तस्वीरों में नज़र आते. लेकिन बैकरूम मैनेजमेंट में उनका कोई सानी नहीं था. सब कुछ करते हुए भी उन्होंने क्रेडिट की चाह नहीं रखी. ऐसे दौर में जब नेता खुद की ब्रैंडिंग और कसीदे मीडिया में देखना पसंद करते थे, अहमद पटेल के कुछ गोल्डन रूल रहे. वह अपना नाम सुर्खियों में देखना पसंद नहीं करते थे. उनके हवाले वाली खबरें अक्सर उनके नाम के बिना पार्टी के टॉप सूत्रों से मिली जानकारी के नाम से छपती थीं.
यह भी सच है कि अहमद पटेल ने अपना अंदाज कभी नहीं बदला, चाहे वह मुश्किल के दिन हों या अच्छे दिन. उनकी सादगी की मिसाल इससे बड़ी क्या हो सकती है कि इतना पावरफुल शख्स होने के बावजूद उनके नाम की प्लेट उनके घर के बाहर कभी नजर नहीं आई. वो 24X7 स्टाइल वाले राजनेता थे. उनका दिन दोपहर के 12 बजे से शुरू होता और रात के तीन बजे तक वह सियासत की उधेड़बुनें सुलझाने में लगे रहते.
एक वक्त था जब पार्टी में अहमद पटेल की तूती बोलती थी लेकिन जब वक्त बदला और राहुल गांधी सेंट्रल स्टेज पर आए तो सोनिया गांधी की टीम को हाशिये पर भेजने की खुसुर फुसुर तेज हो गई. इस दौरान भी अहमद पटेल हमेशा कूल, शांत नजर आए. हालांकि उनके साथ के बाकी नेता राहुल गांधी के व्यवहार से कुछ असहज थे. मगर अहमद पटेल कभी गांधी परिवार के खिलाफ कुछ भी सुनना पसंद नहीं करते थे.
हालांकि उनके साइड लाइन होने से पार्टी नेताओं और हाई कमान के बीच जो डोर थी वो कमजोर पड़ गई. मगर अहमद पटेल फाइटर होने के साथ-साथ सरवाइवर भी थे. ऐसे में राज्यसभा के अपने चुनाव के दौरान अहमद पटेल ने दर्जनों प्रेस वार्ता की और बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी. राज्यसभा में उनकी जीत पार्टी के लिए भी टर्निंग प्वाइंट थी. तब पार्टी धरातल पर थी और नेतागण निराश थे. तब से राहुल गांधी के साथ उनके रिश्ते बदले और राहुल ने भी उनका लोहा माना.
अब चूंकि अहमद पटेल दुनिया से रूखसत हो चुके हैं, ऐसे में उनकी जगह लेना किसी भी कांग्रेसी के लिए आसान नहीं है. कै.अमरिंदर सिंह, गुलाम नबी आजाद, अशोक गहलोत, केसी वेणुगोपाल जैसे नेता कुछ हद तक अहमद पटेल की जगह की पूर्ति कर सकते हैं लेकिन उनके जैसा कोई नहीं हो सकता, ये पक्का है.