दो सरपंच, दो विधायक और दो बार के सांसद तक नहीं सुधार पाए रॉयल सिटी के हालात
- अपने ही हालातों पर आंसू बहाने को मजबूर रॉयल सिटी, 5 हजार से अधिक की आबादी, वार्ड पंच और सरपंच दे रहे नियमों की दुहाई तो विधायक और सांसद खींच रहे पल्ला
NewsBreatheTeam. शहर के बीचों बीच घनी आबादी में बसी एक कॉलोनी, 5 हजार से अधिक की आबादी, सभी वर्किंग क्लास और पढ़े लिखे लोग लेकिन सुविधाएं रत्ती भर की भी नहीं. यहां के लोगों के पास वोट देने का अधिकार भी सबसे अधिक है. लोकसभा और विधानसभा के साथ साथ ये कॉलोनी ग्रामीण क्षेत्र में आने की वजह से सरपंच और वार्ड पंच के लिए वोट भी यहां पड़ते हैं लेकिन ये कॉलोनी में रहने वालों की बुरी किस्मत कहें या फिर अधिकारियों की अनदेखी या फिर जनता पर शासन करने वालों के नियम कायदें कि दो सरपंच, दो विधायक और दो बार के सांसद तक रॉयल सिटी के हालात सुधार पाने में अब तक विफल साबित हुए हैं.
बात हो रही है कालवाड़ रोड स्थित रॉयल सिटी (Royal City) की. यह कॉलोनी झोटवाड़ा विधानसभा क्षेत्र की सबसे बड़ी कॉलोनी कही जाए तो कुछ गलत नहीं होगा. जेडीए की बसाई गई मंगलम सिटी के बाद रॉयल सिटी ही सबसे बड़ी रिहायसी कॉलोनी मानी जाती है. यह कॉलोनी मांचवा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आती है. यहां की आबादी करीब 5 हजार के करीब है और सभी लोग पढ़े लिखे हैं. इस कॉलोनी की आबादी देखी जाए तो मांचवा ग्राम पंचायत की रहने वाली पूरी आबादी से दो गुनी है. अगर शांति नगर, शुभम विहार, न्यू रॉयल सिटी सहित केवल आसपास की कॉलोनी को मिला लिया जाए तो यहां की कुल आबादी 8 हजार के पार निकल जाएगी. इसके बावजूद यहां के लोग पिछले कई सालों से मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं लेकिन सुनवाई तो दूर, कहीं से इतिश्री भी नहीं हो पा रही है.
बरसों से यहां के लोग सड़क, पानी और रोड लाइट के लिए तरस रहे हैं. यहां के लोगों ने शहरी इलाकों को छोड़े पाई पाई जोड़े हुए पैसों से यहां घर लिया लेकिन अब उन्हीं घरों को देखकर पछताने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है. सरकारी पन्नों पर यहां चारों तरफ बाउंड्री वॉल, पक्की सड़कें सीवर लाइन और पीने का साफ पानी है लेकिन लाइटें हैं जो जलती नहीं, सीवर है जो बहती नहीं और पानी है जो आता नहीं. बाउंड्री वॉल तो कभी थी ही नहीं.
बात करें 2016 से तो यहां गिनती के घर और बिल्डिंग हुआ करती थीं. वक्त गुजरता गया और यहां लोग बसते गए. यहां बिल्डिंग बनाने वालों ने लोगों को बसाना जारी रखा लेकिन सुविधाओं के नाम पर ‘अभी होगा अभी होगा’ वाला गाना चालू रखा. जब यहां रहने वालों की संख्या अधिक हो गई तो सभी एकजुट भी हुए और मांग रखी गई सुविधाओं की लेकिन न तो पहले कोई सुनवाई हुई और ना ही लंबे समय बाद हो रही है.
बात की शुरुआत करते हैं 2016 से जब मांचवा ग्राम पंचायत के सरपंच रामफूल चौधरी हुआ करते थे. 2018 के आसपास कॉलोनी के लोगों ने उनके भेंट करते हुए विकास की मांग की. इस पर उन्होंने नियमों का हवाला देते हुए विधायक फंड से काम कराने की बात कही. उनका कहना था कि ये कॉलोनी पंचायत के अधीन नहीं है और न ही जेडीए के अधीन. ऐसे में उनके हाथों में कुछ भी नहीं है. इसके बाद उन्होंने तत्कालीन बीजेपी विधायक और मंत्री राजपाल सिंह शेखावत से मांचवा पंचायत में दो सड़कों के उदघाटन की पट्टी सजवाने के दौरान कॉलोनी वासियों से ज्ञापन भी दिलवा दिए लेकिन हुआ कुछ नहीं और कुछ महिने बाद कांग्रेस सरकार आ गई और लाल चंद कटारिया झोटवाड़ा विस के विधायक और सरकार में मंत्री बन गए. उनसे भी इस बारे में कई बार चर्चा की गई लेकिन उनका भी इस ओर ध्यान नहीं गया.
2020 में जगदीश वर्मा मांचवा पंचायत के सरपंच की कुर्सी पर विराजमान हुए और कॉलोनी के ही रहवासी रामफूल चौधरी पहले वार्ड पंच और बाद में उप सरपंच बने. उप सरपंच होने के बावजूद न तो रामफूल इस दिशा में कुछ कर पा रहे हैं और न ही कॉलोनी से चंद कदमों की दूरी पर रह रहे सरपंच जगदीश वर्मा का इस ओर ध्यान है. जब कॉलोनी वासियों से उप सरपंच पर दवाब बनाया तो उन्होंने सरपंच जगदीश वर्मा संग कॉलोनी वासियों के साथ एक बैठकर रखकर फिर से इतिश्री कर ली. दो बार के सांसद रह चुके राज्यवर्धन सिंह राठौड़ की ओर से भी गुहार लगाई जा चुकी है लेकिन नतीजा फिर बेनतीजा होकर वापिस आ गया.
रॉयल सिटी में विकास कार्य को लेकर सांसद राज्यवर्धन राठौड़ को सौंपा ज्ञापन
ऐसा नहीं है कि कॉलोनी के लोगों ने खुद कुछ करने की कोशिश नहीं की. कॉलोनी में दो दो प्राइवेट समितियां बनी हुई है और उन्होंने आगे बढ़ने की कोशिश करते हुए अपने स्तर पर छोटे मोटे विकास कार्य भी किए लेकिन फंड की कमी, आपसी फूट और आंतरिक राजनीति के चलते वे कभी आगे नहीं बढ़ सकीं. वर्किंग क्लास सोसायटी के चलते लोगों के पास रोजी रोटी कमाने से फुरसत न मिलना भी इस पिछड़ेपन की अहम वजह है.
संज्ञान न लेने की स्थिति में अब हालात इस कदर बिगड़ते जा रहे हैं कि लोगों को टैंकरों से पीने का पानी मंगाना पड़ रहा है. सीवर लाइन न होने से गंदा पानी खाली प्लाट में छोड़ा जा रहा है जिससे आए दिन झगड़े होते रहते हैं. आवारा पशुओं की धमा चौकड़ी अकसर देखने को मिलती है. और तो और, पार्कों और अन्य सार्वजनिक जगहों पर दिन दहाड़े कब्जे हो रहे हैं. सभी बड़े अधिकारी और रहनुमाओं को ये सब कुछ पता है लेकिन जी चुराने, पल्ला झाड़ने और आंख मुंदने की आदत का खामियाजा रॉयल सिटी के लोगों को चुकाना पड़ रहा है.
अब लोग अपने खून पसीने से खरीदे गए घरोदों को छोड़ अपने गांव या किराए के घरों में पलायन कर रहे हैं. कोरोना काल और बेरोजगारी भी इस भावना को बल दे रही है. कॉलोनी में लोगों की कमी नहीं है और न ही समझदारी की लेकिन जब लोस, विस और पंचायत के शीर्ष पदों पर बैठ लोगों ने ही आंखें बंद कर रखी हो तो रॉयल सिटी के लोगों का राम ही मालिक हो सकता है.