दिल्ली में हिंसा का जो सीन क्रिएट किया गया, वह निंदनीय है….

  • किसान इस धरती पर सीधे ब्रह्माण्ड से जुड़ा मनुष्य होता है, जिसे कैलेंडर और घड़ी की जरुरत कम ही पड़ती है, यहां तो सीधे उनके पेट पर लात पड़ने का हो रहा है इंतजाम

NewsBreathe Special. आशंका थी कि कुछ भी हो सकता है.. और हो गया। किसने किया, कैसे किया, क्यों किया, इसका कोई मतलब नहीं। जो हुआ, सबने देखा। टीवी चैनलों के वीडियोग्राफरों ने शूट किया और अब दुनियाभर में 26 जनवरी, 2021 की दोपहर के फुटेज लगातार दिखाए जा रहे हैं, जिससे हरेक को पता चल जाए कि देखो आंदोलन करने वालों ने गणतंत्र दिवस पर ये क्या कर दिया। सब कुछ लाल किले और उसके आसपास हुआ। यह एक इवेंटफुल घटना थी।

सिंघू बॉर्डर, टिकरी बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का आंदोलन जारी है। किसान गणतंत्र परेड का कार्यक्रम पूर्वनिर्धारित था। एक फरवरी को संसद मार्च है। ट्रेक्टर परेड के लिए किसान नेताओं और पुलिस ने मिलकर रास्ते तय किए थे। कोई अंदेशा भी नहीं था। फिर ऐसा क्या हुआ कि कुछ लोग लालकिले की तरफ, आरटीओ की तरफ आ गए। सड़क के बीच में कुछ बसें रोककर ट्रेक्टर से टक्कर मारते हुए टीवी चैनलों को शूटिंग करने का अवसर दिया गया?

क्या आंदोलन को बदनाम करने के लिए दिल्ली में लालकिले के आसपास दो घंटे टीवी चैनलों से शूटिंग करवाई गई थी? लालकिले पर झंडा लगाने वाले लोग बिलकुल वैसे ही दिख रहे थे, जैसे 29 साल पहले अयोध्या के बाबरी ढांचे पर झंडा फहराने वाले दिखे थे। किसानों का आंदोलन जारी है और जन आंदोलन बनने की ओर अग्रसर है। दिल्ली के लोग भूले नहीं हैं, जब पिछले साल जनवरी में नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में आंदोलन करने वालों के खिलाफ मंत्री तक ने गोली मारो… के नारे लगवा दिए थे। उसके बाद दिल्ली में दो-तीन दिनों के लिए दंगे हुए थे।

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किसान आंदोलन का बीजारोपण उसी समय हो चुका था, जब संसद में छल पूर्वक किसान विरोधी क़ानून पारित करवा लिए गए। इससे पहले मोदी सरकार व्यापार विरोधी, कारोबार विरोधी, मजदूर विरोधी और शिक्षा विरोधी क़ानून बना चुकी है। लगातार टीवी देखकर अंधभक्त बने लोगों को पता ही नहीं है उनके साथ कैसा खेल किया जा रहा है। किसान इस धरती पर सीधे ब्रह्माण्ड से जुड़ा मनुष्य होता है, जिसे कैलेंडर और घड़ी की जरुरत कम ही पड़ती है। किसान मौसम को लेकर जागरूक रहते हैं। कुदरती मुसीबत को पहले ही भांप लेते हैं। और यहां तो सीधे उनकी पेट पर लात पड़ने का इंतजाम हो रहा है।

दो घंटे के इवेंट के बाद टीवी चैनल गला फाड़कर चिल्ला रहे हैं कि हिंसा हो गई, किसानों ने उपद्रव कर दिया। यह पूरा घटनाक्रम अत्यंत कुशलता पूर्वक एक बात फैलाकर उसको दूर तक पहुंचाने का सोचा समझा इंतजाम प्रतीत होता है। घटना के बाद तरह तरह की बहाने बाजी के साथ आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया है।

खबरों में कहा जा रहा है कि लाल किले की तरफ पुलिस कम थी। क्या पुलिस को जानबूझकर लालकिले से दूर रखा गया, जिससे टीवी के लिए सीन क्रिएट किया जा सके? सीन क्रिएट करने के लिए लालकिला बहुत अच्छी जगह है। किसानों को अगर हिंसा ही करनी होती तो पुलिस ने उन्हें कई मौके दिए थे। उनको रोकने के लिए सड़क खोद दी, लाठियां चलाई, पानी की बौछार की, आंसू गैस छोड़ी। क्या किसान अपने साथ असलहा लेकर आए हैं?

बहरहाल जो हुआ या किया गया या कराया गया या अपने आप हुआ, जो कुछ भी हुआ, उसे हिंसा के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता। किसान संगठन अपनी ट्रेक्टर रैली शुरू करने वाले थे और राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड ख़त्म ही हुई थी। यह बीच का एक घंटे का अंतराल किसान गणतंत्र परेड को प्रचार से दूर रखने के लिए पर्याप्त था। दिल्ली पुलिस के देखते देखते एक सीन क्रिएट हो गया। जिसने भी तिकड़म भिड़ाई, उसने सोचा होगा कि किसानों को बदनाम करने का इससे अच्छा मौका और हो भी नहीं सकता। बहरहाल जो हुआ, अच्छा नहीं हुआ। इस तरह की हरकत निंदनीय है।

साभार – ऋषिकेश राजोरिया
लेखन में लेखक के स्वयं के विचार हैं. लेखक जाने माने पत्रकार हैं. लेख में किसी तरह की कोई हेरफेर नहीं की गई है.

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