जिन्होंने किया कृषि कानून का समर्थन, उन्हीं को किसानों का रक्षक बनाया सुप्रीम कोर्ट ने
- मोदी सरकार ने तो सुनी नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दी हल्की राहत, कृषि कानूनों पर लगाई रोक, कमेटी का गठन, जारी रहेगा किसान आंदोलन
NewsBreatheTeam. कडकडाती ठंड के बीच करीब 47 दिनों से दिल्ली बॉर्डर में खुली सड़कों पर बैठे किसानों की मोदी सरकार ने तो भले न सुनी हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जरूर सुनी और केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीनों कृषि कानून के लागू होने पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. फिलहाल ये रोक अस्थाई तौर पर लगाई गई है. कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए न केवल अस्थाई रोक लगाई, साथ ही अब इस मसले को सुलझाने के लिए कमेटी का गठन कर दिया गया है. यह कमेटी मामले की मध्यस्थता नहीं, बल्कि समाधान निकालने की कोशिश करेगी. ये किसानों की आधी जीत कही जाए तो गलत न होगा. हालांकि किसानों का धरना बदस्तूर जारी रहेगा.
कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी की बात करें तो इस कमेटी में कुल चार लोग शामिल होंगे. सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घनवंत, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रमोद के. जोशी शामिल हैं. ये कमेटी अपनी रिपोर्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट को ही सौंपेगी, जबतक कमेटी की रिपोर्ट नहीं आती है, तब तक कृषि कानूनों के अमल पर रोक जारी रहेगी.
हालांकि किसान सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश नहीं हैं. किसान संगठनों का मानना है कि इस कमेटी में वे सभी लोग शामिल किए गए हैं जिन्होंने इन कानूनों का समर्थन किया था. भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान शुरुआत में ही कृषि कानूनों पर केंद्र सरकार का समर्थन कर चुके हैं. किसान शेतकारी संगठन के अनिल घनवंत और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी भी तीनों कृषि कानूनों के पक्ष में रहे हैं. ऐसे में देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट ने गेंद को फिर से केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है.
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सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि कमेटी कोई मध्यस्थ्ता कराने का काम नहीं करेगी, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि वो कानून सस्पेंड करने को तैयार हैं, लेकिन अगर किसान समस्या का हल चाहते हैं तो उन्हें कमेटी में पेश होना होगा.
बता दें कि मंगलवार की सुनवाई में किसानों की ओर से पहले कमेटी का विरोध किया गया और कमेटी के सामने ना पेश होने को कहा. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा था कि अगर मामले का हल निकालना है तो कमेटी के सामने पेश होना होगा. अब हर मसला कमेटी के सामने उठाया जाएगा. हालांकि किसानों और कमेटी के बीच अभी भी गफलत और पशोपेश की स्थिति है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से केंद्र को झटका लगना स्वभाविक है.
इस मामले पर सुनवाई चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस राम सुब्रह्मण्यम की बेंच ने की.