पंचायत, जेडीए और जैन बिल्डर्स के त्रिकोणीय भंवर में फंसी ‘रॉयल सिटी’, पंचायतीराज चुनाव को बायकॉट करने का बना रहे मन
- मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसे कॉलोनी के निवासी, सामंजस्य के अभाव में पार्कों और सामुदायिक सुविधाओं की जमीनों पर हो रहा बेखोफ अतिक्रमण, सुध लेने वाला कोई
न्यूज ब्रीथ ब्यूरो। रॉयल सिटी, जयपुर बस स्टैंड से करीब 20 किमी. दूर ग्रामीण परिवेश के बीचों बीच एक शहरी आबादी कॉलोनी. कालवाड़ रोड पर मांचवा गांव के निकट बसी सेमी jda कॉलोनी रॉयल सिटी जहां 2000 से ज्यादा लोग रहते है। ब्राह्मण, राजपूत, जाट और गुर्जर समुदाय के लोगों से बसी इस कॉलोनी में अधिकांश लोग पड़े लिखे और नोकरी पेशा है लेकिन इसके बावजूद यहां के लोग पंचायत, जेडीए और जैन बिल्डर्स के त्रिकोणीय भंवर में फंस कर मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।
घर तो यहां काफी है लेकिन न सीवरेज है, न रोड लाइट, न पक्की सड़क, न पार्क, न पूजा के लिए मंदिर, न पानी की निकासी की व्यवस्था और न ही कचरे को फेकने की जगह।
कहने को तो रॉयल सिटी मांचवा ग्राम पंचायत क्षेत्र में आता है लेकिन कॉलोनी बस जाने की वजह से न तो यहां के निवासियों को पंचायत की ओर से दी जाने वाली सुविधाएं मिल रही हैं और न ही jda की। जिम्मेदार व्यक्ति भी इन्हीं दोनों पर सारी बात छोड़कर अपना पल्ला झाड़ लेते है जो थोड़ा अजीब तो है लेकिन सच है.
जैसा कि मांचवा के वर्तमान सरपंच रामफूल चौधरी का कहना है, ”ये बात सही है कि ये जगह हमारे नियंत्रण में आती है लेकिन कॉलोनी बन जाने की वजह से रॉयल सिटी अर्बन केटेगिरी में शामिल हो गई है। अब हमारे हाथ बंधे हुए हैं और मैं चाहते हुए भी कोई मदद नहीं कर सकता। अब आपको यहां jda का इंतजार करना होगा।”
बात करें, रॉयल सिटी के विस्तार की तो 2006 में जैन बिल्डर्स ने जयपुर कलेक्टर के प्रभाव क्षेत्र से पारित करा कर आवासीय भूमि के तहत काटी थी। चूंकि पहले ये गोचर भूमि थी और आस पास में आज भी खेती होती है इसलिए कॉलोनी का नक्शा भी थोड़ा आडा तिरछा है।
इस पूरी जमीन को प्राइवेट बिल्डरों ने खरीदा और जी प्लस 2 के फ्लैट बनाने शुरू किए। लेकिन किसी में न तो ट्रेनेंज सिस्टम दिया और न ही पानी निकासी का कोई साधन। अब बिल्डिंग का सारा पानी खुले में छोड़ दिया जाता है जिससे जगह जगह गंदे पानी के बड़े बड़े गड्ढे बन गए हैं। चूंकि ये जगह शहर से थोड़ी दूर है, इसलिए सामान्य वेतन वाले लोग ही यहां आते हैं। लोग आते गए और आबादी बढ़ती गई। अब हाल ये है कि कच्ची सड़क होने की वजह से पानी बाहर की तरफ बहता है। कई कई जगह तो 2-2 फीट गहरे पानी के गड्ढे बन गए हैं जिनमें आये दिन गाड़ियां फंस जाती है। ये रोज का नजारा है।
कॉलोनी के साइड मैप पर नजर डाले तो ये एक शानदार और लग्ज़री कॉलोनी जैसा दिखाई देता है. कॉलोनी में 4 ब्लॉक, सभी में एक एक पार्क की जगह, कॉलोनी के बीचो बीच एक हजार वर्ग गज का खाली स्पेस जो पार्क के लिए छोड़ा गया है, साथ ही पक्की सड़क विद डिवाइडर, रोड लाइट, सिवरेज लाइन, सार्वजनिक सामूदायिक केंद्र, मंदिर, अस्पताल के लिए जगह और कॉलोनी को बंद करने के लिए 4 दिशाओं में चार गेट और बाउंड्री वॉल, लेकिन ये सब केवल नक्शे और जैन बिल्डर्स की बातों में कैद है. हकीकत तो ये है कि यहां पक्की सड़क तक नहीं है.
चूंकि इस कॉलोनी में अधिकतर नौकरी पेशा लोग रहते हैं, ऐसे में इन बातों के लिए लड़ाई लड़ने का समय भी किसी के पास नहीं. अब हालात ये बन पड़े हैं कि पार्कों की खाली जमीनों पर अवैध कब्जे होने लगे हैं. कोई सुध रखने वाला नहीं है, ऐसे में कॉलोनी के दो पार्कों को पूरी तरह गायब कर दिया गया है. रिहायसी जमीनों में दुकाने खड़ी होने लगी है. खाली फ्लैट अपराधारियों की पनाहगार बनते जा रहे हैं. यहां तक की प्राइवेट बिल्डर्स प्रशासन से सांठगांठ कर 3 फ्लोर की जगह 5 फ्लोर खड़े कर धडल्ले से बेच रहे हैं. रोड लाइट न होने से शाम के 6 बजे बाद सड़के अंधेरे की आगोश में समा जाती हैं और फिर वो बन जाती हैं शराबियों का अड्डा.
कई बार शिकायत करने के बाद भी कोई सुधार तो नहीं दिख रहा बल्कि स्थितियां बद से बदतर होती जा रही हैं. यह सब देखने के बाद कोई दोराय नहीं कि आने वाले समय में यहां आए दिन कच्ची बस्तियों की तरह झगड़े देखने को मिलेंगे.
अब पंचायतीराज चुनाव होने जा रहे हैं तो कॉलोनीवासियों में से कुछ बुद्धि जीवियों ने सरपंच चुनावों को बायकॉट करने का फैसला लिया है. चूंकि कॉलोनी में 700 से अधिक वोटर हैं, ऐसे में यहां के वोटों की बड़ी संख्या परिणाम बनाने और बिगाड़ने में निर्णायक भूमिका अदा करती है. इसके बावजूद कॉलोनीवासियों का कहना है कि जब हमारे वोट लेकर भी पंच और सरपंच मिलकर यहां का कुछ भला नहीं कर सकते और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा सकते तो वोट देने और बिगाड़ने से क्या फायदा.
वहीं कुछ लोग इन चुनावों पर कोर्ट से स्टे लेने के बारे में भी विचार कर रहे हैं और इस बारे में सलाह लेना भी शुरु कर दिया है. जाहिर सी बात है, डवलपमेंट नहीं तो वोट भी नहीं. अब देखना ये होगा कि ग्रामीण परिवेश के हिसाब से इतने भारी संख्या में वोटर्स मांचवा पंचायत का खेल बनाते हैं या बिगाड़ते हैं.