रोहित सरदाना की मौत ने उठाया एक अहम सवाल ‘चुनाव जरूरी था या महामारी से निपटना’
- देश को संकट में डाल दिया सरकार की नीतियों और चुनाव आयोग की चुप्पी ने, क्या टाले नहीं जा सकते थे चुनाव
NewsBreathe_Special. आज तक न्यूज़ चैनल के वरिष्ठ पत्रकार और न्यूज एंकर रोहित सरदाना का आज कोविड—19 के चलते निधन हो गया. राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री सहित सभी बड़े राजनेता और बड़े पत्रकारों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है. रोहित सरदाना अपनी बेबाक छवि के लिए जाने जाते थे. उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे और एक दिन पहले तक वे ट्वीटर पर लोगों की मदद कर रहे थे. उनकी अक्समात मौत से पत्रकारिता का एक दौर खत्म हो गया है लेकिन उनकी मौत ने एक अहम सवाल खड़ा किया है कि देश में चुनाव जरूरी था या फिर कोरोना महामारी से निपटना?
कोविड-19 ने देश दुनिया को पिछले एक साल से अपनी आगोश में लिया हुआ है. लाखों मौत हो चुकी है और करोड़ों इस बीमारी से ग्रस्त हैं. कोविड के देश में आने की खबर पिछले साल जनवरी में ही मिल गई थी, इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के स्वागत में ‘नमस्ते ट्रंप’ समारोह का आयोजन किया. संकट की खबर मिलने के बाद भी अंतराष्ट्रीय यात्रा बंद नहीं हुई. इसी कोरोना काल में बिहार में विधानसभा चुनाव और मध्यप्रदेश में 25 सीटों पर उप चुनाव हुए. गुजरात और राजस्थान में भी उप चुनाव हुए. अब पश्चिम बंगाल सहित 5 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा चुनाव हुए हैं. गौर करने वाली बात तो ये है कि जहां कोरोना संकट को देखते हुए स्कूल कॉलेज सहित कई प्रतियोगी परीक्षाएं यहां तक की नीट व आईआईटी जैसी परीक्षाओं को रद्द कर दिया गया है, पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया, उस देश में बंगाल में 8 चरणों में चुनाव कराए गए और दो महीनों से अधिक समय के लिए हजारों लाखों की संख्या में भीड़ इक्ठ्ठी करते हुए चुनावी रैलियां आयोजित हुई.
बिहार में भी कुछ ऐसा ही हुआ और खुद प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगों से अधिक से अधिक संख्या में वोट करने को कहा. ऐसा ही कुछ बंगाल, पुद्दुचेरी, असम, केरल व तमिलनाडू में हुआ जहां खुद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने 100 से ज्यादा चुनावी रैलियां की. ममता बनर्जी ने भी रैलियां करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. जहां एक ओर केंद्र सरकार में मंत्री और बड़े नेता कोरोना काल में आम जनता को घर में बैठने का संदेश देते हुए सोशल मीडिया पर लंबे लंबे लेख लिख रहे हैं, वही रैलियों में ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी कराकर कोरोना को खुले आम न्यौता दे रहे हैं.
इस बीच चुनाव आयोग की खामोशी पर भी अचंभा होता है कि आखिर क्यों लोगों की जिंदगी को खतरे में डाला जा रहा है. जब सभी बातों पर रोक लगाई जा सकती है तो क्या चुनाव एक साल टाला नहीं जा सकता, वो भी तब जब कोरोना काल में करीब 12 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हो चुके हें. ऐसे संकट काल में चुनाव कराकर न केवल लोगों की जान संकट में डाली गई है, साथ ही साथ इसका भार टैक्स के रूप में जनता पर ही डाला जाना है.
न्यूज एंकर रोहित सरदाना की मौत ने ये तो साबित किया है कि कहीं न कहीं सरकार और चुनाव आयोग से गलती हुई है. एक अनुमान के अनुसार बंगाल में चुनावी रैलियों और प्रचार कार्यों में 385 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं जबकि करीब करीब इतना ही खर्चा अन्य चार राज्यों में हुए चुनावी रैलियों और प्रचार में खर्च हुआ है. इतने पैसे को अगर एक साल चुनाव टालकर स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ोतरी में लगाया होता तो शायद देश में 10 नए एम्स जैसे अस्पताल, 10 नए आॅक्सीजन प्लांट और 48 हजार वैंटीलेटर तैयार किए जा सकते थे , जिनकी कोरोना काल में जरूरत थी.
अगर चुनाव आयोग चाहता तो ये कर सकता था. यहां तक की कुछ राज्यों की हाईकोर्ट ने जरूर कुछ कोरोना से जुड़े जनहितकारी फैसले सुनाए लेकिन राज्य सरकारें इन्हें भी सुप्रीम कोर्ट तक ले गई क्योंकि ये फैसला कहीं न कहीं सरकारों पर बंदिशें लगाने का काम कर रही थी. चुनाव आयोजित कराने तक तो ठीक था लेकिन महज 294 सीटों पर 8 चरणों में चुनाव कराना कहां तक न्याय संगत है क्योंकि इस बीच करीब ढाई महीनों तक जमकर जनरैलियां की गई और जमकर कोरोना बांटा गया. अब हालात ये हैं कि कोलकता में हर दूसरा व्यक्ति संक्रमित हो रहा है.
अगर कोई प्राइवेट संस्था ये खेल कर जाती तो शायद अब तक उस पर जाने अनजाने लोगों की जान खतरे में डालने का मामला दर्ज हो जाता लेकिन अब क्या करें क्योंकि भारत में लोकतंत्र है और राजनेताओं को 100 खून भी माफ है. इतने समय से तो कुछ एक को छोड़कर पत्रकारिता के बड़े बड़े धुरंदर सरकार की चापलूसी करने में जुटे हुए थे लेकिन रोहित सरदाना की मौत ने शायद इनके जमीर को भी झकझोड़ दिया है.
एनडीटीवी के सीनियर एडिटर रविश कुमार ने अपने एक लेख में लिखा’कोविड के दौरान कई पत्रकारों की जान चली गई लेकिन सूचना प्रसारण मंत्री को हर वक़्त प्रधानमंत्री की छवि चमकाने से फ़ुरसत नहीं है. इस देश में एक ही काम है कि लोग मर जाएं लेकिन मोदी जी की छवि चमकती रहे आप लोग भी अपने घर में मोदी जी के बीस बीस फ़ोटो लगा लें. रोज़ साफ़ करते रहें ताकि उनका फ़ोटो चमकता रहे. उसे ट्वीट कीजिए ताकि उन्हें कुछ सुकून हो सके कि मेरी छवि घर घर में चमकाई जा रही है.’
‘आएगा तो मोदी ही’ कहकर सोशल मीडिया पर ट्रोल हुए अनुपम खेर
रविश कुमार ने आगे कहा कि आप मानें या न मानें, इस सरकार ने सबको फंसा दिया है. आप इनकी चुनावी जीत की घंटी गले में बांध कर घूमते रहिए, कमेंट बाक्स में आकर मुझे गाली देते रहिए लेकिन इससे सच नहीं बदल जाता है. कहीं न कहीं रविश कुमार का कहना गलत तो नहीं है. वजह यही है कि चुनावी रैलियों और चुनाव कराने में जितना पैसा खर्च हुआ, उसे टालकर स्वास्थ्य तैयारियों को मजबूत बनाने में किया जा सकता था. जब चुनावी रैलियों में वक्त जाया किया जा रहा था, उस समय इससे निपटने की योजना बनाई जा सकती थी.
सरकार और मोदी की छवि चमकाने के चक्कर में ही प्रमुख न्यूज चैनल ने अपनी बेबाक छवि को मिटियामेट किया है. जिन्होंने चलवे चाटने से मना कर दिया, वे अपने डिजिटल पोर्टल और यूट्यूब चैनल पर अपनी बेबाक छवि को कायम रखे हुए हैं. हमारे अजीज मित्र रोहित सरदाना की मौत ने ये तो साबित कर ही दिया है कि जब वक्त खराब आता है तो कोई सरकार आपके लिए कुछ नहीं कर सकती. अभी भी वक्त है बदलने का, वरना वो वक्त भी दूर नहीं जब मीडिया की हालत एक पट्टे बंधे कुत्ते से ज्यादा नहीं होगी. वजह सिर्फ एक है कि राजनेता अपनी राजनीति करते रहेंगे और आयोग चुनाव कराने की तैयारी फिर रोहित सरदाना हो या फिर कोई आम आदमी, किसी की मौत से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. ज्यादा हुआ तो एक शोक भरा ट्वीट कर दिया जाएगा और इतिश्री.
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