पत्रकारों के साथ हिंसा मीडिया की स्वतंत्रता का हनन, लगेगा 50 हजार का जुर्माना

  • पत्रकारों के साथ बदसलूकी करने वालों पर दर्ज होगी FIR, 24 घंटों में भेजा जाएगा जेल, पुलिसकर्मियों को भी नहीं बख्शा जाएगा, फ्रंटलाइन कोविड वॉरियर का दर्जा देने की मांग

NewsBreathe/UP/Rajasthan. पत्रकार विनीत नारायण की फेसबुक पोस्ट मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ ने पत्रकारों से अभद्रता करने वालों को कड़ी चेतावनी दी है. अब से पत्रकारों से अभद्रता करने वालों पर 50,000 का जुर्माना और बदसलूकी करने पर 3 साल की जेल हो सकती है. पत्रकारों को धमकाने वाले को 24 घंटे के अंदर जेल भेज दिया जाएगा और आरोप में गिरफ्तार आरोपियों को आसानी से जमानत नहीं मिलने का प्रावधान भी रखा गया है. भारतीय प्रेस काउंसिल ने भी पत्रकारों से साथ होने वाले दुर्रव्यवहार और ज्यादती को मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन बताया है.

इस संबंध में सीएम योगी ने कहा कि पत्रकारों को परेशानी होने पर पुलिस प्रशासन तुरंत संपर्क कर सहायता प्रदान करें. पत्रकारों से मान-सम्मान से बात करें वरना महकमे को भी भारी पड़ सकता है.

पत्रकार नहीं हैं भीड़ का हिस्सा, व्यवहार सही रखें पुलिस -IPC

भारतीय प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने राज्य सरकारों को चेतावनी देते हुए पुलिस सहित अन्य से पत्रकारों के साथ बदसलूकी न करने के निर्देश दिए हैं. काटजू ने कहा कि पुलिस के अनुचित व्यवहार के चलते कई बार पत्रकार आजादी के साथ अपना काम नही कर पाते हैं. किसी स्थान पर हिंसा या बवाल होने की स्थिति में पत्रकारों को उनके काम करने में पुलिस व्यवधान नहीं पहुंचा सकती है. पुलिस जैसे भीड़ को हटाती है, वैसा व्यवहार पत्रकारों के साथ नही कर सकती क्योंकि पत्रकार भीड़ का हिस्सा नहीं हैं.

उन्होंने कहा कि पत्रकारों के साथ बदसलूकी करने वाले पुलिस कर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज होगी. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो एसपी पर कार्यवाही हो सकती है. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में पत्रकारों के साथ ज्यादती बढ़ती जा रही है. अगर पुलिस प्रशासन की तरफ से ऐसा किया जाता है तो पुलिसवालों या अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा.

काटजू ने कहा कि जिस तरह कोर्ट में एक अधिवक्ता अपने मुवक्किल का हत्या का केस लड़ता है लेकिन वह हत्यारा नहीं हो जाता है. उसी प्रकार किसी सावर्जनिक स्थान पर पत्रकार अपना काम करते हैं लेकिन वे भीड़ का हिस्सा नहीं होते. ऐसे में पत्रकारों को उनके काम से रोकना मीडिया की स्वतंत्रता का हनन करने जैसा है.

पुलिस कर्मियों पर हो सकता है आपराधिक मामला दर्ज

प्रेस काउन्सिल ने देश के केबिनेट सचिव, गृह सचिव, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिवों व गृह सचिवों को इस सम्बन्ध में निर्देश भेजा है. उसमें स्पष्ट कहा है कि, पत्रकारों के साथ पुलिस या अर्द्धसैनिक बलों की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जायेगी. सरकारें ये सुनिश्चित करें कि पत्रकारों के साथ ऐसी कोई कार्यवाही कहीं न हो. पुलिस की पत्रकारों के साथ की गयी हिंसा मीडिया की स्वतन्त्रता के अधिकार का हनन माना जायेगा जो संविधान की धारा 19/1-A में दी गयी है. इस संविधान की धारा के तहत बदसलूकी करने वाले पुलिसकर्मी या अधिकारी पर आपराधिक मामला दर्ज होगा.

सरकार के इस निर्देश के बाद पत्रकारों के सम्मान में वृद्धि होगी और उन्हें राहत भी मिलेगी. दरअसल, पत्रकार विनीत नारायण ने 17 जून को फेसबुक पर एक पोस्ट डालते हुए नगीना, बिजनौर में एक गोशाला में हो रहे 50 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था. फेसबुक पोस्ट में विहिप के शीर्ष नेता चंपत राय के परिवार जनों के द्वारा भूमि हड़पने का आरोप लगाया गया था। लेकिन इसके बाद चंपत राय के सबसे छोटे भाई संजय बंसल ने इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए इसे अपने परिवार के मानहानि का मामला बताते हुए 19 जून को नगीना थाने में केस दर्ज करा दिया था.

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इसके बाद पत्रकार विनीत नारायण पर आईपीसी की डेढ़ दर्जन धाराओं में केस दर्ज किए गए. इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा है कि अगर इस तरह फेसबुक पोस्ट किए जाने पर केस दर्ज किए जाने लगेंगे तो संविधान में नागरिकों को दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का क्या होगा। कोर्ट ने इस बात पर भी हैरानी जताई है कि पत्रकार पर केस दर्ज करने के दौरान ऐसी धाराओं का उपयोग किया गया जो किसी भी तरह से इस मामले से संबंधित नहीं हैं.

प्रेस एवं मीडिया कर्मियों को मिले फ्रंटलाइन कोविड वॉरियर का दर्जा – RC

इसी से मिलती जुलती एक जनहित याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट सभी सभी प्रेस एवं मीडिया कर्मियों एवं पत्रकारों को फ्रंटलाइन कोविड वॉरियर मानने और समान लाभ देने की मांग को लेकर नोटिस जारी कर चुकी है.

जनहित याचिका में सभी मीडिया एवं प्रेस कर्मियों को फ्रंटलाइन कोविड वॉरियर मानने और कोविड-19 से प्रभावित होने के पर समान लाभ देने की मांग रखी गई थी. याचिकाकर्ता ने मांग की कि सरकार अधिस्वीकृत और गैर अधिस्वीकृत पत्रकारों में भेदभाव नहीं करें और कोरोना संक्रमित मृत पत्रकारों के परिवारों को 50 लाख लाख रुपए मुआवजा राशि दे, भले ही वे अधिस्वीकृत हो या नहीं.

मामले पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सचिव, मुख्य शासन सचिव और वित्त विभाग के सचिव को नोटिस जारी कर दिए हैं.