मलमास में पवित्र कार्य करने से देवता होते हैं रूष्ट
शास्त्रों में मलमास को अत्यंत दुषित और अशुभ महीनों के तौर पर माना जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार मलमास के दिनों में गृह प्रवेश व शादी विवाह से लेकर छोटे से छोटे शुभ कार्य करने पर भी पूर्ण रूप से मनाही होती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य प्रत्येक 30 दिन बाद अपनी राशि में परिवर्तन करता है। इस तरह सूर्यदेव 12 महीनों में 12 अलग-अलग राशियों में प्रवेश करते हैं। जब राषियों में विचरते हुए सूर्यदेव धनु और मीन राशियों में अवतरित होते हैं तो उसी समय को मलमास कहा जाता है। इन दिनों को खरमास भी कहते हैं। एक तरह से माना जाए तो इस दिनों को अपवित्र कहा जाता है।
वर्ष में दो बार आता है मलमास
मलमास साल में दो बार आता है। पहली बार मलमास दिसम्बर से जनवरी के मध्य लगता है जब सूर्यदेव बृहस्पति की राषियों के संपर्क में आते हैं। दूसरा मलमास मार्च से अप्रैल के बीच आता है जब सूर्यदेव मीन राशि में प्रवेश करते हैं।
मलमास में क्यूं रूकते हैं पवित्र कार्य
सूर्य तेज और उर्जा का प्रतीक है। साथ ही सूर्य को हर राशि का गुरू माना जाता है और सभी शुभ कार्यों में गुरू का शुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है। मलमास के दौरान जब सूर्य नीच जातियों में विचरण करता है तो गुरू के शुभ होने के कारण पवित्र कार्यों व शुभ कार्यों पर अंकुश लगाया जाता है। विवाह के संबंध में बात करें तो वर के सूर्य का बल और वधु के बृहस्पति का बल मिलना जरूरी है। जब दोनों के चंद्र बल का मिलान होता है तब ही विवाह संपन्न और सफल होता है।
मलमास में इन बातों का रखें खास ख्याल
मलमास के दिनों में शुभ कार्यों के संपादित न होने से सकारात्मक उर्जा का अभाव होने लगता है। ऐसे में मलमास की काली छाया पड़ने से होने वाले अशुभ परिणाम से सुरक्षा के लिए सात्विक जीवन जीना चाहिए। इन दिनों को श्रद्धा और भक्तिमय तरीकों से गुजारने की सलाह दी जाती है। मलमास के शुरूआती दिनों में व्रत व उपवास करने का फल अच्छा मिलता है। मलमास के व्रत करने वाले व्यक्ति पूरे महीने सादा और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। इन दिनों में भगवान विष्णु का पूजन करने से न केवल बुरे कर्मों का फल समाप्त होता है बल्कि धन-धान्य व सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है।