पतंगबाजों से News Breath की अपील ‘बेजुबानों का दर्द समझें’
मांझे से कटने वाले पक्षियों की सहायता की मुहिम में हमारा साथ दें और मानवीय धर्म को निभाएं।
पहला दिन: मुझे भी नया-नया पतंगबाजी का शौक लगा था। मकर संक्रांति आने से पहले ही सुबह-सुबह छत पर चढ़ जाते और बस वो काटा वो मारा, यही गुंजता। लेकिन एक दिन जो हुआ, उसने तो मेरी जिंदगी ही बदल दी। आज जब नए साल की शुरुआत हो रही है तो सोचा कि क्यों न इसी मुहिम से शुरु किया जाए। असल में कुछ सालों पहले मेरी पतंग के मांझे में एक कबूतर फंस कर नीचे गिर पड़ा और फड़फड़ाने लगा। पास जाकर देखा तो उसके पंख से खून निकल रहा था और पंख करीब-करीब आधा कट चुका था। अब उसे उठाने में भी डर लग रहा था। मैने उसके पास थोड़ा पानी फैलाया लेकिन वह उठ भी नहीं पा रहा था और थोड़ी देर में उसकी मौत हो गई।
उस दिन सोचा कि क्या हम इतने निर्दयी हो चुके हैं कि इन बेजुबानों के लिए केवल चंद घंटों के लिए पतंगबाजी छोड़ नहीं सकते। यह बात मुझे अंदर तक झकझोर कर चली गई। उसी दिन मैंने अपने आपसे आंख मिलाने के लिए नया नया पतंगबाजी का शौक हमेशा के लिए छोड़ दिया।
अब बात आती है अन्य पतंगबाजों की तो हम उन्हें बिलकुल यह नहीं कहेंगे कि आप पतंग उड़ाना छोड़िए। हां, बस इतनी अपील जरूर है कि चंद घंटों के लिए पतंग की डोर अपने हाथों से त्याग दीजिए। सुबह 6 से 8 बजे और शाम 4 से 6 बजे तक पक्षियों के निकलने और हवा में उड़ने का समय होता है। कृप्या इन 4 घंटों के लिए पतंगबाजी का हुनर अपने पास ही संभाल कर रखें। ध्यान दें कि प्रत्येक मकर संक्रांति पर आपके द्वारा इस्तेमाल चायनीज मांझे से सैंकड़ों पक्षियों की कट कर मौत हो जाती है। News Breath की ‘बेजुबानों का दर्द समझें’ मुहिम का हिस्सा बनें और अपने मानवीय धर्म का पालन करें।
मकर संक्रांति के शुभ मौके पर घायल हुए पक्षिओं की बददुआओं का बोझा अपने सिर न लें। याद रखे कि जानवर और पक्षी मनुष्य के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं।