कर्नाटक विधानसभा चुनाव: कांग्रेस को 100 से कम सीटें मिलीं तो होगी मुश्किल
सभी को 13 मई को आने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणामों का बेसर्बी से इंतजार, अधिंकाश एग्जिट पोल्स कांग्रेस के पक्ष में लेकिन बहुमत से दूर, जेडीएस का जनाधार घटा लेकिन सरकार बनाने में रहेगी महत्वपूर्ण भूमिका, मोदी के सहारे बीजेपी को 120 सीटें हासिल करने की आस
कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections 2023) के एग्जिट पोल्स में हंग असेंबली के अनुमान लगाए जाने के बाद से राज्य में सियासी हलचल बढ़ गई है। अधिकांश एग्जिट पोल ने पिछली बार की तरह किसी भी पार्टी को बहुमत से दूर रखा है। हालांकि कांग्रेस की स्थिति पिछली बार की बीजेपी की तरह हो सकती है जहां उसे बहुमत के लिए केवल 7-8 विधायकों की और जरूरत होगी। कांग्रेस आसानी से इस आंकड़े को पूरा कर लेगी। इधर, JDS को 22-28 सीटें मिलने का पूर्वानुमान लगाया जा रहा है। यानी जेडीएस का राज्य में जनाधार घटा है। पिछली बार पार्टी को 37 सीटें मिली थी। इसके बावजूद, इस बार भी एचडी कुमारास्वामी किंगमेकर और गेमचेंजर की भूमिका में रहेंगे। हालांकि इस बार कुमारास्वामी ताजपोशी से दूर हो सकते हैं।
वहीं दूसरी ओर, अगर कांग्रेस 100 सीटों से कम हासिल करती है और एक बारगी मान भी लिया जाए कि जेडीएस की सहायता से कर्नाटक में सरकार बना भी ले तो भी उसके लिए हालात खराब ही रहेंगे। पिछले बार कांग्रेस के पास 80 सीटें थी और जेडीएस के पास 37। दोनों ने मिलकर सरकार तो बना ली लेकिन उसके बाद क्या हुआ, ये कहानी सभी को पता है। अगर इस बार कांग्रेस के पास 100 से अधिक सीटें आती हैं और जेडीएस के साथ गठबंधन सरकार बनती है तो किसी भी अनहोनी या तोड़फोड़ की स्थिति में कांग्रेस सुरक्षित ही रहेगी। यानी सरकार को नुकसान होने के आसार कम रहेंगे। ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि अगर मध्यप्रदेश की तर्ज पर दोनों पार्टी के 25 से 30 विधायक एक साथ इस्तीफा दे दें तो अल्पमत में आने के बावजूद सरकार बचाई जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि कांग्रेस के पास 100 से अधिक और बीजेपी के पास 80 से कम विधायक होने चाहिए। अगर इससे विपरीत परिणाम आते हैं तो जेडीएस सरकार बनाने के लिए बीजेपी के साथ भी जा सकती है। ऐसा पहले भी हो चुका है।
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वहीं बात करें एचडी कुमारास्वामी की ताजपोशी की, तो इस बार उन्हें इंतजार करना पड़ सकता है या फिर सीमित समय के लिए मुख्यमंत्री पद की रजामंदी से ही संतोष करना पड़ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि करीब करीब सभी एग्जिट पोल ने कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी बनाया है। दो से तीन एग्जिट पोल्स ने तो कांग्रेस को बहुमत भी दिया है। अगर ऐसा होता है तो जेडीएस का कांग्रेस के साथ जाना मजबूरी होगी। हालांकि ऐसा राजनीतिक फायदे के लिए किया जा सकता है। बहुमत में होने के बावजूद कांग्रेस सेफ गेम खेलते हुए भविष्य में आने वाली संभावित तोड़फोड़ के खतरे को देखते हुए जेडीएस को गठबंधन में रखेगी और इसके ऐवज में जेडीएस के कुछ विधायकों को मंत्री पद देना कुछ गलत भी नहीं होगा। कुमारास्वामी को डिप्टी सीएम का पद दिया जा सकता है। सरकार में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए जेडीएस को ऐसा करना ही होगा।
वहीं अगर कांग्रेस बहुमत से दूर रहती है लेकिन 105-108 सीटें हासिल करने में सफल होती है तो भी कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री पद हासिल नहीं होना पक्का है। ऐसा इसलिए, क्योंकि राज्य में 224 विधानसभा सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए 113 विधायकों की जरूरत है। अगर इनमें से 100 सीटें कांग्रेस के हिस्से में आ जाती हैं तो बाकी बची सीटों पर बीजेपी और जेडीएस का कब्जा होगा। 8-10 सीटें छोटी स्थानीय पार्टियों एवं निर्दलीयों के हाथों में होगी। अगर कांग्रेस को 8-10 सीटें बहुमत के लिए चाहिए होंगी, तो वो आसानी से इन सभी जोड़कर बना सकती है। हालांकि सेफ गेम खेलने और सरकार को मजबूत बनाए रखने के लिए उन्हें जेडीएस की मदद चाहिए होगी।
मध्यप्रदेश की पिछली बार की राजनीतिक परिस्थितियां कर्नाटक की सियासत के लिए बड़ा उदाहरण है। मध्यप्रदेश के पिछले चुनावों में कांग्रेस बहुमत के एकदम करीब थी। 230 सीटों पर हुए मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 114 सीटों पर जीत मिली। बहुत के लिए केवल दो सीटों की जरूरत थी। वहीं बीजेपी भी एकदम किनारे पर खड़ी थी। बीजेपी को 109 सीटें मिली और उसे बहुमत साबित करने के लिए 7 सीटों जरूरत थी। अतिरिक्त सीटों में से बसपा के पास दो, सपा के पास एक और 4 सीटों पर निर्दलीय थे। यहां कांग्रेस ने बसपा और सपा को साथ मिलाकर सरकार बना ली। हालांकि केवल 15 महीनों के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत करते हुए अपने समर्थित 28 विधायकों के इस्तीफे डलवा दिए और बीजेपी में जाकर शामिल हो गए। कांग्रेस के बड़े अंतर से अल्पमत में आते ही शिवराज सिंह चैहान ने सरकार बनाने का दावा ठोक दिया और मुख्यमंत्री बन बैठे।
ऐसा ही कुछ खेल राजस्थान मे ंभी खेलने की कोशिश की गई थी लेकिन यहां ऐसा संभव नहीं हो सका। इसकी वजह ये थी कि राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस बीजेपी से पहले से ही 28 सीटें आगे थी। कांग्रेस को 100 सीटें मिली थी। इसके बाद उन 11 विधायकों का कांग्रेस को समर्थन हासिल था जो या तो कांग्रेस छोड़ चुके थे या पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। ऐसे में कांग्रेस के पास बहुमत के 101 विधायकों की जगह 111 विधायकों का समर्थन हासिल था। इसके बाद बसपा के 6, बीटीपी के दो और सपा के एक विधायक का समर्थन भी गहलोत सरकार को मिला हुआ था। ऐसे में कांग्रेस के पास समर्थित विधायकों की संख्या बढ़कर 120 हो गई थी। बाद में एक रिक्त सीट पर भी कांग्रेस विधायक जीत कर आए तो ये संख्या 121 हो गई। बीजेपी के पास केवल 73 विधायक थे। अन्य तीन विधायक हनुमान बेनीवाल की पार्टी रालोपा के पास थे।
जब सचिन पायलट 19 विधायकों के साथ मानेसर पहुंचे, जिनमें वे खुद भी शामिल थे, तब अगर ये सभी विधायक सरकार से बाहर भी हो जाते तो भी अशोक गहलोत के पास 101 विधायकों का समर्थन था। बीजेपी को सरकार बनाने का अवसर तब मिलता जब कम से कम 40 विधायक सदन से इस्तीफा देते और बाहर से समर्थन दे रहे सभी 9 विधायक कांग्रेस से किनारा कर लेते। तब कांग्र्रेस के विधायकों की संख्या 70 के करीब होती और उस वक्त बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में होती। यही वजह थी कि कथित तौर पर बीजेपी द्वारा तोड़फोड़ की कोशिश कामयाब नहीं हो पाई और अशोक गहलोत सरकार बचाने में कामयाब हो पाए।
अब कहानी फिर से लौटकर कर्नाटक की राजनीति पर आ गई है। जोड़ तोड़ से पहले पूरा ध्यान कल आने वाले चुनावी परिणाम पर रहेगा। अगर यहां कांग्रेस को सेफ गेम खेलना है और सरकार 5 साल चलानी है तो उनके खाते में 100-108 के करीब सीटें आनी जरूरी हैं। अगर किन्हीं परिस्थितियों की वजह से कांग्रेस और बीजेपी थोड़े अंतर से एक समान सीटें हासिल करने में कामयाब होती हैं तो यहां हो सकता है कि जेडीएस की मदद से कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हो जाए लेकिन कुछ वक्त के बाद कर्नाटक की जनता को फिर से उपचुनाव की मार झेलनी पड़ेगी, जैसा कि पिछली बार घटित हुआ था।