‘गांधी परिवार ही कांग्रेस’ क्योंकि इनके अलावा कोई संभाल भी नहीं पाएगा.

  • इतिहास इस बात का गवाह है कि गांधी परिवार को चुनौती देने वालों को पड़ी है मुंह की खानी, बीते 70 सालों में कोई भी गांधी परिवार के वर्चस्व और तिलस्म को नहीं तोड़ पाया, राजेश पायलट से लेकर जितेंद्र प्रसाद तक संगठन में चुनाव लड़े थे, लेकिन सभी बुरी तरह हारे.

NewsBreathe_Special. पिछले कई दशकों से राजनीति में ये चर्चा आम है कि गांधी परिवार के हाथों में ही कांग्रेस की कमान क्यों है. भारतीय जनता पार्टी का उदाहरण देते हुए बार बार ये कहा जाता है कि अगर कोई और भी कांग्रेस को संभाले तो कांग्रेस अधिक अच्छा प्रदर्शन कर सकती है. कुछ रणनीतिकार भी इसी तरह की सोच रखते हैं लेकिन हमारा और राजनीति विशेषज्ञों की मानना है कि गांधी परिवार ही अंत तक कांग्रेस का सिपेसालार रहेगा. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि गांधी परिवार के अलावा कांग्रेस को कोई संभाल भी नहीं पाएंगे और पार्टी अंर्तकलह में भी बर्बाद हो जाएगी.

लोकसभा चुनाव-2019 में हालांकि कांग्रेस 51 सीटों पर सिमट गई और तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उसके बाद सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष की कमान संभाली. अब लोकसभा चुनाव को ढाई साल हो चुके हैं लेकिन एक सक्रिय अध्यक्ष का नाम सामने नहीं आय़ा. जी3 में शामिल 23 वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस की गिरती हुई साख, धूमिल होते वजूद और कमजोर होते संगठन पर सवाल उठाया तो उन्हें चुप करा दिया गया. राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने इस रूख पर नाराजगी व्यक्त की थी.

सचिन पायलट, अशोक गहलोत, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अमरिंदर सिंह जैसे कई नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के संभावित दावेदारों के तौर पर सामने आए लेकिन हुआ वहीं ढाक के तीन पात. अब अगले साल फिर से राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष के तौर पर देखना करीब करीब निश्चित है. वो इसलिए कि अगले साल के शुरूआत में पंजाब, यूपी सहित 5 और अंत में दो राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन 7 में से केवल पंजाब में कांग्रेस सरकार है. ऐसे में इन्हें केंद्रीय नेतृत्व की जरूरत पढ़ेगी.

वहीं इतिहास इस बात का गवाह है कि गांधी परिवार और खुद सोनिया गांधी को चुनौती देने वालों को जबरदस्त मुंह की खानी पड़ी है. बीते 70 सालों में कोई भी पार्टी मुखिया या गांधी परिवार के वर्चस्व और तिलस्म को नहीं तोड़ पाया. अगर किसे ने इस बारे में कोशिश भी की तो या तो उसे हार मिली या पार्टी के बार का रास्ता. राजेश पायलट से लेकर जितेंद्र प्रसाद तक संगठन में चुनाव लड़े थे, लेकिन बुरी तरह हारे. एनसीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार कभी कांग्रेस पार्टी के सबसे प्रबल नेता थे लेकिन जब उन्होंने सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद की दावेदारी का विरोध किया तो उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. ऐसे एक नहीं बल्कि दर्जनों उदाहरण हैं.

कांग्रेस और गांधी परिवार के इस वर्चस्व को मजबूत बनाया है पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की सरपरिस्थिति ने. कैप्टन अमरिंदर सिंह, अशोक गहलोेत, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, रणदीप सिंह सुरजेवाला, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक, हरिश रावत, अजय माकन, गुलाम नबी आजाद, अविनाश पांडे, अधीर रंजन चौधरी एवं डॉ.मनमोहन सिंह जैसे सीनियर नेताओं ने गांधी परिवार और कांग्रेस से हमेशा और हालातों में वफादारी रखी. इसी का नतीजा है कि दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस अभी भी अपने जिंदा होने का सबूत दे रही है. सीनियर लीडरशिप की इसी वफादारी के चलते सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष बनीं और केवल 5 साल बाद लोकसभा चुनाव न सिर्फ जीता बल्कि लगातार 10 सालों तक देश के शासन पर राज किया.

हालांकि राजनीति के अथाह गहरे सागर में कांग्रेस के लड़खड़ाते जहाज को ढूबते हुए देख कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जितिन प्रसाद, ब्राह्मण चेहरा कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेश पति त्रिपाठी और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेताओं ने कमल की ओट में क्षरण ली. सिंधिया ने तो कमलनाथ सरकार का ही तख्ता पलट दिया. गुजरात, गोवा सहित कई राज्यों में कांग्रेस टिकट पर जीते कई विधायकों ने या तो सदस्यता छोड़ दी या बीजेपी में शामिल हो गए.

यूपी चुनाव को देखते हुए पिछले दिनों बुंदेलखंड के बड़े दलित नेता और पूर्व विधायक गयादीन अनुरागी एवं विनोद चतुर्वेदी और महोबा के कांग्रेस नेता मनोज तिवारी कांग्रेस छोड़ कर सपा में चले गए. इससे भी कांग्रेस कमजोर हुई है. जी23 के नेता भी पार्टी से नाराज हैं जिनमें सलमान खुर्शिद भी शामिल हैं. लेकिन फिर भी गांधी परिवार के अलावा किसी भी बाहर व्यक्ति के हाथों में संगठन की बागडौर नहीं सौंपा जाना तय है.

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कांग्रेस के बड़े नेताओं का अन्य पार्टियों में जाना हमारी नजर में कांग्रेस को कमजोर नहीं बना रहा, बल्कि मजबूती प्रदान कर रहा है. वजह – इन सभी नेताओं के पार्टी से निकलने के बाद केवल और केवल विश्वासपात्र नेता भी कांग्रेस के साथ बने रहेंगे और इनका अनुभव और विश्वासनियता ही पार्टी के लिए मुश्किल रास्तों पर रास्ता बनाने एवं दिशा दिखाने का काम करेगी.

आखिर में एक राजनीति एक्सपर्ट होने के नाते यही कहना चाहेंगे कि राजनीति की रेतीली जमीं पर जमें कांग्रेस के बरगद की जड़ों को बांधे रखने का काम गांधी परिवार ही कर रहा है. कांग्रेस के विश्वस्तप्रद नेता इस बरगद का तना है. अगर वृक्ष टेड़ा मेड़ा है तो उसकी कमजोर डालियों को काटना सही होगा न कि सीधा जड़ों पर वार करना. अगर जड़ पर वार किया तो न पेड़ बचेगा और न ही तना. उसी प्रकार, अगर कांग्रेस से गांधी परिवार की अनदेखी की गई तो न लीडरशिप बचेगी और न ही कांग्रेस. पार्टी के नेता ही आपस में लड़कर कांग्रेस को खत्म कर लेंगे. ऐसे में गांधी परिवार ही कांग्रेस को जोड़े रखने का एकमात्र उपाय है.