सरकार के नियम-कायदे केवल जनता के लिए, बाकी के लिए 100 खूब माफ!

  • सरकारी कानून तो केवल जनता के लिए है. बाकी के लिए इनका होना या न होना बराबर है क्योंकि उनके लिए तो 100 दफाएं भी माफ है

न्यूज ब्रीथ, राजस्थान। ये बात राजनीति के गलियारों में बैठे लोगों को बुरी लग सकती है लेकिन आम जनता से पूछें तो कुछ गलत नहीं, 100 टका सच है. सरकार जो भी नियम कायदे बनाती है या यूं कहें कि लादती है, वो केवल और केवल जनता के लिए ही है. उसका राजनीति और रसूख वालों के लिए कोई महत्व नहीं है. इस बात का जीता जागता और ताजा उदाहरण देखना हो तो माननीय शिक्षा मंत्री गोविंद डोटासरा के सरकारी आवास के बाहर पहुंच जाइए, जहां का माहौल खूब-ब-खूब इस बात की गवाही दे रहा है.

आज माननीय शिक्षा मंत्री और राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद डोटासरा का जन्मदिन है. इस खुशी को उनके चेले चपाटे और उनके समर्थन हर्ष उल्लास के साथ मना रहे हैं. सड़क पर दिन में ही जमकर पटाखें फोड़े जा रहे हैं. जबकि माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तड़के ही ये आदेश जारी किया है कि अगले चार महीने यानी 31 जनवरी तक के लिए प्रदेश में पटाखे फोड़ने या खरीदने बेचने पर मनाही रहेगी. यहां तक की पटाखों के अस्थाई लाइसेंस देने पर भी पाबंदी लगाई गई है.

ऐसा लगातार दूसरी बार हुआ है. पिछले साल भी दिवाली पर पटाखे फोड़ने या खरीदने बेचने पर रोक लगा दी गई थी. यानी हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहार को हाय और बाय करके ही मनाना पड़ेगा क्योंकि कोरोना काल में चेहरे पर मास्क है, महामारी को देखते हुए किसी के यहां न जा सकते हैं और न खा सकते हैं. एक हजार करोड़ का व्यापार खराब हुआ सो अलग.

बरहाल, ऐसा कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए किया गया है. खैर, ये तो अलग मुद्दा है लेकिन असल बात तो ये है कि एक ओर तो सरकार पटाखे फोड़ने के नियम जारी करती है और वहीं सरकार में ही मंत्री डोटासरा के जन्मदिन पर उनके समर्थकों ने इस नियम को 24 घंटे से भी कम समय में धता कर दिया. अब ऐसा तो है नहीं कि इस बात की जानकारी सरकार या पुलिस को नहीं है. फोटो में साफ साफ दिख रहा है कि पुलिस भी वहीं है लेकिन वे भी आखिर सरकारी नुमाइंदे हैं और सरकार से बैर लेना उनके बस की बात नहीं.

ये राजनेता हैं जनाब! जहां गए..वहीं के हो लिए, इसमें गलत क्या है

अब इसका सीधा मतलब तो ये हुआ कि सरकार के सारी नियम, कायदे कानून केवल और केवल भोली भाली जनता के लिए ही गढ़े गए हैं. कोरोना के चलते लॉकडाउन लगा तो सरकार ने अपने नियमों में कोई ढील नहीं की. न बैंक की वसूली में, न स्कूल फीस वसूली में, न टैक्स वसूली में और न ही बिजली-पानी की बिल वसूली में. हालांकि थोड़ा वक्त जरूर दिया लेकिन पैसा तो पूरा लिया न. वहीं नौकरी पेशा लोगों को तो अपनी आमदनी से भी हाथ धोना पड़ा. लेकिन ये सरकार है जनाब. इन्हें आमजन से क्या लेना देना.

सीधे सीधे शब्दों में कहा जाए तो ये जनता का दुर्भाग्य है कि जो संविधान जनता को सरकार चुनने का अधिकार देता है, उस जनता के हाथों में न तो सरकार या उसके नुमाइंदों को हटाने का अधिकार है और न ही गलत नियमों के खिलाफ आवाज उठाने का. अगर सच में ऐसा है तो कहने में क्या बुराई है कि सरकारी कानून तो केवल जनता के लिए है. बाकी के लिए इनका होना या न होना बराबर है क्योंकि उनके लिए तो 100 खून भी माफ है.