गुरू और हंसल मेहता की ‘स्कैम 1992’ का मिक्सचर है अभिषेक बच्चन की ‘द बिग बुल’

  • एक बार फिर परोसा गया है स्टॉक मार्केट का खट्टा रायता, संवाद नए लेकिन कहानी पुरानी, स्टार कास्ट बड़ी लेकिन समय कम, ओवरडोज़ रोमांस और बेस्वाद जायका

NewsBreatheSpecial. ‘मैंने मिडिल क्लास इंडिया को सपने देखना सिखाया है.’ कुछ ऐसा ही डायलॉग अभिषेक बच्चन ने 2007 में आई हिन्दी फिल्म गुरू में कहा था, ‘सपने मत देखो..मेरा बापू कहता था क्योंकि सपने सच नहीं होते, लेकिन मैने देखा..’. ओटीटी पर रिलीज हुई अभिषेक बच्चन स्टारर फिल्म ‘द बिग बुल’ को देखकर वही याद आती है. मुंबई के एक चॉल में रहने वाला मध्यमवर्गीय नौकरीशुदा, स्टॉक मार्केट के एक टिप से कैसे भारत का सबसे बड़ा टैक्सपेयर बन जाता है, इस थोड़ी सच्ची- थोड़ी काल्पनिक कहानी को दिखाया है निर्देशक कूकी गुलाटी ने. ‘द बिग बुल’ हर्षद मेहता द्वारा किये गए 1992 के शेयर बाजार घोटाले के आधार पर बनी फिल्म है. पिछले साल हंसल मेहता निर्देशित चर्चित वेब सीरीज ‘स्कैम 1992’ से यह फिल्म काफी प्रेरित है लेकिन यहां काफी क्रिएटिव आजादी भी ली गई है और यही क्रिएटिव आजादी इसे हंसल मेहता की ‘स्कैम 1992’ से अलग बनाती है. (The Big Bull)

द बिग बुल की कहानी 2020 से शुरु होती है, जहां पत्रकार मीरा राव (इलियाना डिक्रूज) हेमंत शाह (अभिषेक बच्चन) पर लिखी अपनी किताब का अनावरण करती है और उसकी कहानी को दुनिया के सामने रखती है. हेमंत शाह, जिसने 80 और 90 के दशक में शेयर मार्केट में तूफान ला दिया था. यहीं से कहानी अतीत के पन्नों में पिरोई जाती है. हेमंत शाह अपने भाई और मां के साथ मुंबई के एक चॉल में रहता है, लेकिन उसके ख्वाब आसमान छू लेने जैसे हैं. जिस लड़की से वह प्यार करता है, उसके पिता की शर्त होती है कि लड़के के पास घर, गाड़ी और अच्छी खासी संपत्ति होनी चाहिए. सपने और प्यार को पाने की उसकी चाह को हवा तब मिलती है जब एक दिन अचानक ही उसे शेयर मार्केट की एक बड़ी टिप हाथ लगती है. उस टिप की मदद से उसे बड़ा मुनाफा होता है. इस घटना से हेमंत की हिम्मत और नीयत भी बढ़ जाती है और वह सीधे स्टॉक मार्केट का रुख करता है और लंबी से लंबी कुलांचे लगाते आगे बढ़ता जाता है.

अपने भाई वीरेन शाह (सोहम शाह) के साथ मिलकर वह एक तरह से शेयर मार्केट की डोर अपने हाथ में कर लेता है. एक समय आता है कि जब उसे शेयर मार्केट का ‘अमिताभ बच्चन’ और ‘बिग बुल’ कहा जाने लगता है. फिर वह शेयर मार्केट से आगे बढ़कर मनी मार्केट यानी निजी- सरकारी बैंकों से लेन- देन के खेल में शामिल हो जाता है, दूसरी तरफ उसकी राजनीतिक पहुंच भी पक्की होती जाती है. जल्दी ही वह लाखों से करोड़ों में मुनाफा कमाने लगता है। अब उसके पैसों की चमक पर सवाल उठने लगते हैं. फायनेंशियल पत्रकार मीरा देव (इलियाना डिक्रूज) हेमंत शाह द्वारा बैंकों के साथ किये गए हेर-फेर का सनसनीखेज़ खुलासा करती है. यह घोटाला 5 हजार करोड़ तक का होता है लेकिन हेमंत शाह कहता है- देश में 80 प्रतिशत बैंकिंग सिस्टम गैरकानूनी है, मुझे बलि का बकरा बना रहे हैं ये लोग”.. ‘. यही से कहानी किस तरह आर्थिक से राजनीतिक बन जाती है, इसी के इर्द गिर्द घूमती है पूरी फिल्म.

हेमंत शाह की कहानी ऐसी है कि यदि आपको दलाल स्ट्रीट की समझ ना हो, तो भी यह दिलचस्पी बनाए रखेगी. यह कहानी है एक मध्यमवर्गीय इंसान के ऊंचे सपनों की, उन सपनों को किसी भी हाल में पूरा करने की जिद की. निर्देशक कूकी गुलाटी ने वेब सीरीज जितनी लंबी चौड़ी कहानी को ढाई घंटे में समटने की कोशिश की है लेकिन शायद इसे तीन या सवा तीन घंटे में सिमेटा जाता तो कहानी में जान आ सकती थी. लेकिन अफसोस कि दमदार कलाकारों द्वारा निभाए गए कई किरदार फिल्म में कब आते हैं और कब चले जाते हैं, पता भी नहीं चलता. इसके चलते कोई भी किरदार दिमाग पर छाप छोड़ने में सफल नहीं रहा है. आर्थिक-राजनीतिक घोटाले के बीच रोमांटिक गाना बिल्कुल ही बेस्वादी लगता है. पूरी कहानी हंसल मेहता की ‘स्कैम 1992’ से प्रेरित है, जिसकी झाप जाना बिलकुल भी मुनासिब नहीं है फिर चाहें वो पटकथा हो या अभिनय. फिल्म कई पक्षों में कच्ची दिखती है.

फिल्म में एक से बढ़कर एक कलाकार शामिल हैं, लेकिन समय की कमी के चले अधिकतर बेअसर रहे हैं. हेमंत शाह के किरदार में अभिषेक बच्चन कुछ दृश्यों में जंचे हैं खासकर सेकेंड हॉफ में. उनका ये अवतार गुरू में भी देखा जा चुका है लेकिन इस बार ये अवतार ग्लैमरस से भरा हुआ है. मूछों और चश्मे में वे जमते हैं. डायलॉग डिलीवरी के बाद के दृश्यों में अभिषेक निराश जरूर करते हैं. वीरेन शाह के किरदार में सोहम शाह, हेमंत शाह के मां के किरदार में सुप्रिया पाठक जंचे हैं, लेकिन उनके किरदारों में स्कोप ही नहीं है. हेमंत शाह की गर्लफ्रैंड/पत्नी बनीं निकिता दत्ता ठीक है जबकि पत्रकार की भूमिका में इलियाना डिक्रूज ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. राम कपूर, सौरभ शुक्ला, समीर सोनी जैसे कलाकार चंद सीन्स में दिखते हैं इसलिए उनके बारे में चर्चा न करें तो ही बेहतर.

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फिल्म के संवाद रितेश शाह ने लिखे हैं, जो कि प्रभावी हैं. कुछ डायलॉग जैसे ‘अंग्रेज हमसे कोहिनूर ही नहीं, हमसे हमारी सोच, सेल्फ कॉफिडेंस सब लूट कर ले गए हैं..”‘ जुंबा पर चढ़ते हैं लेकिन करीब करीब सभी डायलॉग अभिषेक और इलियाना के हिस्से में आए हैं. दोनों डायलॉग डिलीवरी का खेल खेलते हुए दिखाई देते हैं. धर्मेंद्र शर्मा की एडिटिंग फिल्म को थोड़ी और बांध सकती थी. विष्णु राव की सिनेमेटोग्राफी प्रभावी है. मुंबई के चॉल से लेकर दलाल स्ट्रीट और मुंबई की सड़कों को उन्होंने कहानी में बढ़िया पिरोया है. फिल्म में जो इक्के- दुक्के गाने हैं, वो सिर्फ कहानी से आपका ध्यान भंग करते हैं.

कुल मिलाकर द बिग बुल एक बॉयोपिक नहीं बल्कि हर्षद मेहता की कहानी से प्रेरित है. यहां रैप है, रोमांस है लेकिन सब कुछ ओवर ड्रामा है. सबसे खास बात यह है कि जहां हंसल मेहता की सीरिज में हर्षद मेहता को ना गलत, ना सही दिखाया गया है, ‘द बिग बुल’ में हेमंत शाह यानी अभिषेक बच्चन को बतौर एक हीरो की तरफ परोसा गया है जो शायद ठीक नहीं है. अभिषेक बच्चन ने फिल्म में अपने किरदार को पकड़े रहने की पूरी कोशिश की है, लेकिन सैंकेड हाफ में वे अपनी ही फिल्म ‘गुरु’ की याद दिलाते हैं, जिसे आप चाहकर भी नजरअंदाज़ नहीं कर सकते हैं.

फिल्म के कुछ डायलॉग हमेशा के लिए याद रह जाएंगे. रोमांटिक सॉन्ग आदि में कुछ देर के लिए फिल्म अपने ट्रेक पर भटकती जरूर नजर आती है और बोर करती है. अभिषेक बच्चन के फैन हैं, तो ‘द बिग बुल’ एक बार जरूर देखी जा सकती है. न्यूज़ ब्रीथ की ओर से अभिषेक की एक्टिंग को 5 में से 3 और फिल्म को 2.5 स्टार दिए जा सकते हैं.

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