मकर संक्रांति पर क्यों उड़ाई जाती है पतंग, जानिए पीछे का सच

मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा का न केवल सांस्कृतिक महत्व है, बल्कि इसके पीछे कई ऐतिहासिक और वैज्ञानिक कारण भी जुड़े हुए हैं। यह परंपरा विशेष रूप से गुजरात, राजस्थान और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में लोकप्रिय है।

पतंग उड़ाने की परंपरा का महत्व

  1. सूर्य उपासना का प्रतीक:
    मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का त्योहार है। इस दिन सूर्य देव की उपासना की जाती है। खुले आसमान में पतंग उड़ाना सूर्य के प्रति आदर और आभार व्यक्त करने का प्रतीक माना जाता है।
  2. सर्दियों से बचाव:
    मकर संक्रांति जनवरी के ठंडे मौसम में आती है। पतंग उड़ाने के दौरान व्यक्ति खुले में रहकर सूर्य की किरणों का लाभ लेता है। सूर्य की किरणें विटामिन डी प्रदान करती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
  3. मनोरंजन और उत्सव का हिस्सा:
    पतंग उड़ाना एक मनोरंजक गतिविधि है जो पूरे परिवार और दोस्तों को एक साथ लाने का काम करती है। यह खुशी और उत्साह का माहौल बनाता है और त्योहार को और भी जीवंत करता है।
  4. सांस्कृतिक परंपरा:
    पतंगबाजी मकर संक्रांति का एक विशेष प्रतीक बन चुकी है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और समाज में एकता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देती है।
  5. आध्यात्मिक महत्व:
    कुछ मान्यताओं के अनुसार, पतंगों को ऊंचाई तक उड़ाना आत्मा को ऊंचा उठाने और ब्रह्मांड से जुड़ने का प्रतीक है।
  6. गुजरात से लोकप्रियता:
    गुजरात में पतंगबाजी के लिए मकर संक्रांति का त्योहार खासतौर पर प्रसिद्ध है। यहां इसे उत्तरायण के नाम से जाना जाता है, और राज्य में पतंग महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश से लोग हिस्सा लेते हैं।

क्यों मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्योहार, क्या आपको है पता?

पतंगबाजी का आनंद और शोर

पतंग उड़ाने के दौरान “वो काटा!” और “अरे मारा!” जैसे उत्साहजनक शब्दों की गूंज छतों पर सुनाई देती है। यह प्रतियोगिता और मस्ती का माहौल बनाता है, जो इस त्योहार की खास पहचान है।

निष्कर्ष:

मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाना केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह त्योहार के धार्मिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य संबंधी पहलुओं से भी जुड़ा हुआ है। पतंगबाजी इस दिन को और भी रंगीन और खास बना देती है।