RU Election: रितु बराला की राह आसान नहीं, पार्टी की अंतरकलह भारी पड़ना निश्चित

NSUI के बागी निहारिका जोरवाल, संजय चौधरी और राजेन्द्र गोरा निर्दलीय के रूप में मैदान में, निर्दलीयों को समझाने में सफल रही ABVP

NewsBreathe. वैसे तो राजस्थान यूनिवर्सिटी के इतिहास में सत्ता धारी पक्ष की छात्र संगठन पार्टी अध्यक्ष पद पर कभी काबिज नहीं हो पाई है। वजह कुछ भी रही हो, लेकिन यही सच है। साथ ही साथी पिछले 5 चुनावों से छात्र संघ के दोनों बड़े संगठन NSUI और ABVP दोनों ही अपने खेमे से अध्यक्ष बनने से दूर रही हैं। आखिरी बार भी पूजा वर्मा निर्दलीय के रूप में अध्यक्ष बनी थी। अबकी बार भी चमत्कार को देखते हुए NSUI  ने रितु बराला को टिकिट थमाया है लेकिन यहीं से उनकी राह में कांटे भी बिछाए गए हैं। वहीं ABVP अपने विरोधियों को साधने में सफल रही, तो कुछ ओवर एज पर आए कोर्ट के फैसले के बाद खुद ही शांत होकर पार्टी के साथ आ खड़े हुए, जिससे बीजेपी समर्थित ABVP ने चैन की सांस ली है। अब ABVP की ओर से नरेंद्र यादव मैदान में हैं, अन्य कोई बड़ा नाम सामने नहीं आ रहा है।

यहां NSUI की मुसीबतें बढ़ी हुई हैं। रितु को अध्यक्ष पद पर टिकट मिलने के बाद संगठन के ही संजय चौधरी, निहारिका जोरवाल और राजेन्द्र गोरा ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है। राजस्थान सरकार में मंत्री की सुपुत्री निहारिका दम खम तो पहले ही दिखा चुकी हैं, लेकिन अब जीत दर्ज करने के लिए बस्सी से लेकर शाहपुरा तक लगातार रैलियां कर रही हैं। रैलियों में उमड़ा जन सैलाब हो न हो, NSUI को चिंता में जरूर डाल रहा है।

NSUI के ही संजय चौधरी भी निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं। निर्धारित उम्र सीमा होने की वजह से चुनाव लड़ने का उनके पास आखिरी साल है, इसलिए वे बिल्कुल भी समझौते के पक्ष में नहीं हैं। संजय राजस्थान कॉलेज के अध्यक्ष रह चुके हैं और जाना पहचाना चेहरा हैं।

इसी तरह राजस्थान विधि महाविद्यालय के वर्तमान अध्यक्ष राजेन्द्र गोरा भी मैदान में हैं और किसी भी तरह से अपने कदम पीछे हटाने को तैयार नहीं है। दोनों ने साफ तौर पर कहा कि उन्हें संगठन से कोई शिकायत नहीं है लेकिन अपनी अपनी उम्मीदवारी को अनदेखा करने से नाराजगी जरूर है। अब NSUI के वोटर्स 4 भागों में बंट गए हैं जिसका खामियाजा रितु को जरूर उठाना पड़ेगा। यहां उनको अब महारानी कॉलेज से ज्यादा आशा हैं क्योंकि कुल वोटर्स में चौथाई वोट महारानियों के हैं।

दिक्कतें यहीं तक रहती तो भी चल जाता लेकिन निर्मल चौधरी ने दोनों संगठन की परेशानियां बढ़ा रखी है। निर्मल दोनों ही विचारधारा को समर्थन नहीं करते और पिछले 3 सालों से छात्रों के बीच अपनी जमीन तलाशने में लगे हुए हैं। इस बार निर्मल भी अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ रहे हैं और लगातार शक्ति प्रदर्शन कर सबकी नाक में दम मचा रहे हैं।

इधर ABVP  में सब कुछ बिना कुछ किए ही सब कुछ अच्छा हो रहा है। संगठन के नरेंद्र यादव को टिकट देने के बाद राहुल मीणा (नाहरला) और डेनपाल सिंह दिवराला ने निर्दलीय चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी कर ली थी लेकिन उम्र सीमा पर आए कोर्ट के फैसले ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। उसके बाद दोनों ने फिर से संगठन के साथ जाने का फैसला लिया जिससे नरेंद्र यादव के साथ संगठन ने भी चैन की सांस ली है। ABVP में अब कोई बड़ा चेहरा सामने नहीं आ रहा है जिससे किसी तरह की परेशानी आ सके। ऐसे में नरेंद्र यादव काफी खुश हैं लेकिन निहारिका जोरवाल, संजय चौधरी, राजेन्द्र गोरा और निर्मल चौधरी हर किसी की दिक्कतें बढ़ा सकते हैं।