भुज-द प्राइड ऑफ इंडिया: इंडो-पाक वॉर की दम तोड़ती पटकथा
- सैकंड हाफ के आखिरी 25 मिनिट ही प्रभावी, कहानी नाटकीय और बनावटी, अजय देवगन ही हैं पूरी फिल्म का फोकस, न्यूज ब्रीथ की ओर से फिल्म को 2.5 अंक
75वें स्वतंत्रता दिवस पर अजय देवगन की फिल्म भुज-द प्राइड ऑफ इंडिया को ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज किया गया है. देशभक्ति से ओत प्रोत इस फिल्म के ट्रेलर सभी जगह जोशों—खरोश से दिखाये जा रहे हैं जो प्रभावित करते हैं लेकिन अगर पूरी फिल्म की बात करें तो फिल्म के शुरुआती 95 मिनट में 1971 इंडो—पाक वॉर की सच्ची कहानी पर आधारित ये कहानी नाटकीय और बनावटी लगती है. अंतिम 25 मिनट फिल्म के वायुसेना के करतब और एक्शन को छोड़ दें तो शायद फिल्म में एक भी सीन ऐसा नहीं आएगा कि लोगों में देशभक्ति की भावना जगे या फिर लोग सीटों पर से खड़े होकर ‘हिंदूस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगा सकें.
भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया भारतीय इतिहास से एक अविश्वसनीय कहानी को दर्शाती है, इसमें कोई शक नहीं लेकिन अभिषेक दुधैया के निर्देशन में काफी कमी दिखाई देती है. फिल्म का आखिरी हाफ और क्लाइमेक्स फ़िल्म का हाई प्वाइंट है, जिसे छोड़ दें तो फिल्म दम तोड़ती हुई दिखाई देती है. फिल्म को छोटी करने के लिए की गई एडिटिंग ही फिल्म का मजा किरकिरा करने के लिए काफी है. फिल्म में अजय देवगन ने एयर फोर्स कमांडिंग ऑफिसर विजय कार्णिक का किरदार निभाया है.
भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के एक अविश्वसनीय अध्याय की कहानी है. 1971 में पाकिस्तानी सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के निवासियों के उत्पीड़न से परेशान होकर लाखों लोग बचने के लिए भारत की ओर पलायन करते हैं. भारत भी इस संघर्ष में शामिल हो जाता है और अपने अधिकांश सैनिकों को पूर्वी सीमा पर तैनात कर देता है. इस स्थिति का फायदा उठाकर पाकिस्तान पश्चिमी तरफ भारत के डिफेंस बेस पर हमला करने लगता है. 8 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तान वायु सेना ने अचानक भुज एयरबेस पर हमला कर देता है.
इस हमले में कई लोगों की जान चली जाती है और हवाई पट्टी भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती है. नतीजतन, भुज और कच्छ देश के बाकी हिस्सों से कट जाते हैं. भारतीय वायु सेना के विमान भी नहीं उतर सकते क्योंकि हवाई पट्टी नष्ट हो गई है और इसकी मरम्मत करने वाले इंजीनियर भाग गए हैं। इस बीच पाकिस्तानी सेना ने भुज की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और पूरे क्षेत्र पर कब्जा करने की योजना बना रही है. इस समस्या का एकमात्र उपाय यह है कि किसी भी कीमत पर रात भर हवाई पट्टी की मरम्मत की जाए. ऐसे में किस तरह स्थानीय नागरिक आर्मी की सहायता करते हैं और बेस को एक रात में फिर से खड़ा करते हैं, देखने वाली बात है.
अभिषेक दुधैया, रमन कुमार, रितेश शाह और पूजा भवोरिया की कहानी आकर्षक है लेकिन पटकथा बीच बीच में टूटने लगती है. फ़र्स्ट हाफ में कहानी में बिखराव है लेकिन सेकेंड हाफ़ में सीट पकड़ कर बैठने योग्य है क्योंकि सेकेंड हाफ़ में, कहानी में एक निश्चित ‘ठहराव’ सा आता है. क्लाइमेक्स खासतौर पर बहुत सोच-समझकर बनाया गया है. ग्रामीणों को समझाते हुए अजय का मोनोलॉग दिल को छू लेने वाला है.
फ़िल्म की लंबाई कम करने के लिए जगह-जगह से कई सीन्स को काटा गया है जो आसानी से समझ आ जाता है. कई एक्शन दृश्यों में तर्क के लिए कोई जगह नहीं है.
संजय दत्त भी एक ऐसा किरदार निभाते हैं, जिसकी पिछली कहानी को ठीक से समझाया नहीं गया है, लेकिन फ़िर भी वह अपने रोल में जंचते हैं. सोनाक्षी सिन्हा ने देर से एंट्री ली लेकिन वह फिल्म का सरप्राइज है. नोरा फतेही डांस के साथ एक्टिंग भी कर लेती है, वो इस पिक्चर में दिखता है. उनका एक्शन सीन मुख्य आकर्षण में से एक है. शरद केलकर (आर के नायर) हमेशा की तरह भरोसेमंद और एम्मी विर्क (विक्रम सिंह बाज) अच्छे लगते हैं. प्रणिता सुभाष (उषा), इहाना ढिल्लों (आर के नायर की पत्नी) और महेश शेट्टी (लक्ष्मण) को ज्यादा स्कोप नहीं मिलता जबकि नवनी परिहार (इंदिरा गांधी) निष्पक्ष है. अन्य कलाकार जनरल याह्या खान, हीना रहमानी के पति मोहम्मद हुसैन ओमानी, विंग कमांडर ए. साहू, मुख्तार बेग और तैमूर रिज़वी की भूमिका निभाने वाले कलाकारों का काम ठीक है.
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गानों की ज्यादा गुंजाइश नहीं है लेकिन ‘हंजुगम’ भूलने योग्य है और ‘देश मेरे’ देशकिक्त गीत दिल को छूता है. सोनाक्षी सिन्हा का ‘हे ईश्वर मालिक ही दाता’ का भक्ति गीत शक्तिशाली लेकिन लींग से हटकर है. असीम बजाज की सिनेमेटोग्राफ़ी प्रभावशाली है.
हमारा कहना तो यही है कि इस पैमाने पर बनी फ़िल्म को सिनेमाघरों में रिलीज होना चाहिए था क्योंकि यह बड़े पैमाने पर बनाए दृश्यों से भरी होती है और दर्शकों के बीच जबरदस्त क्रेज पैदा करती है. हालांकि भुज और अजय देवगन से जो उम्मीदें उनके फैंस ने लगाई थी, वो ज्यादा कामयाब नहीं हो पाई है. भुज-द प्राइड ऑफ इंडिया को न्यूज ब्रीथ की टीम 5 में से 2.5 पॉइंट देती है.