सब कुछ खुला…केवल आमजन की रोजी रोटी पर लगा लॉकडाउन
- राजस्थान सरकार ने 19 अप्रैल से 3 मई तक लगाया लॉकडाउन-2, सेफ्टी वाली जगहों को किया बंद जबकि मंडी और खुले में फल सब्जी बेचने वालों को मिली छूट, जहां सबसे अधिक कोरोना संक्रमण फैसले का डर
NewsBreathe_Special. जैसा कि न्यूज ब्रीथ ने अपने पिछले लेख में दावा किया था, अगर हालात नहीं सुधरे तो प्रदेश में लॉकडाउन-2 की आहट होगी, ठीक वैसा ही हुआ. दो दिन के वीक एंड कफ्र्यू के बाद रविवार देर रात राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अगले 15 दिन यानी 19 अप्रैल से 3 मई तक प्रदेशभर में लॉकडाउन की घोषणा कर दी. पिछले साल पटरी से उतरी जीवन यापन की जद्दोजहर वाली कमाई की गाड़ी धीरे धीरे वापस लौट ही रही थी कि उंचे उंचे पदों पर बैठे मोटी सैलरी उठाने वाले कुछ सरकारी नुमाइंदों ने मुख्यमंत्री महोदय को लॉकडाउन लगाने का सुझाव दिया जो उन्होंने मान भी लिया. कहा जा रहा है कि ये जीवन बचाने के लिए किया जा रहा है लेकिन असल बात तो ये है कि लॉकडाउन में बस, आॅटो सब कुछ कुछ खुला है, बस लॉक है तो आमजन की उम्मीदें. ये तालाबंदी तो केवल आमजन की रोजी रोटी पर लगाया गया एक लॉकडाउन कहा जाए तो बेहतर रहेगा.
राजस्थान सरकार की जारी नई गाइडलाइन पर गौर करें तो सरकारी सुविधाओं जैसे जिला प्रशासन, नगर निगम, बिजली-पानी-टेलीफोन, बैंक, दुध मंडी, अनाज मंडी, सब्जी मंडी, सिटी बस, आॅटो, मेट्रो, भारी परिवहन, किराना स्टोर, फल, सब्जी, मिठाई की दुकान, मेडिकल, डेयरी एवं पशु आहार की दुकानों के साथ साथ खुले में फल सब्जी बेचने वाले ठेले भी खुले हुए हैं. हॉस्पिटल, क्लीनिक, टीकाकरण केंद्र, शादी समारोह और वहां जाने वाले निश्चित लोगों को भी आवागमन की सुविधा है जबकि सार्वजनिक एवं धार्मिक आयोजनों पर रोक है. मंदिर, मॉल, सिनेमाघर, शिक्षण संस्थाएं, कोचिंग एवं लाइब्रेरी को भी बंद रखा गया है. प्राइवेट दफ्तरों और सामान्य दुकानों को भी बंद रखा गया है. यह सब इसलिए किया गया है क्योंकि बाहर निकले तो कोरोना अपनी चपेट में ले लेगा जबकि ताजा उदाहरण है कि दो दिन कफ्र्यू और गिने चुने लोगों के बाहर निकलने पर पाबंदी के बावजूद शनिवार को साढ़े नौ हजार और रविवार को साढ़े दस हजार नए कोरोना मरीज सामने आए हैं जबकि 60 के करीब मौत हुई है.
अब समझ ये नहीं आ रहा कि जब कोई बाहर निकला ही नहीं तो इतने नए कोरोना मरीज कैसे आ गए. यानी सीधी सी बात ये है कि महामारी सब जगह है. अगर बाहर नहीं भी निकले तो भी ये आपको पकड़ लेगा, बशर्ते आप सावधानी और सतर्कता रखें. यहां तक माना जा रहा है कि प्राइवेट दफ्तरों में इस बार का पूरा ध्यान रखा जा रहा है कि मास्क, सेनेटाइजर के साथ साथ सोशल डिस्टेंसिंग का पूर्ण रूप से पालन हो. अब सरकार के उन सलाहकारों ने तो अपनी सीट पर बैठे बैठे मुख्यमंत्री गहलोत साहब को लॉकडाउन का सुझाव दे दिया जिसे मान भी लिया गया है, लेकिन जहां कोरोना अपने पांव पसारे बैठा है, यानी सब्जी मंडी, अनाज मंडी, खुले में फल सब्जी बेचने वाले लोग, उन्हें खुला छोड़ रखा है. यानी सरकार का सीधा मानना ये है कि ये लोग कोरोना नहीं फैलाते लेकिन एक सामान्य दुकान या प्राइवेट आफिस वाले जरूर ऐसा करते हैं.
ये भी माना जा सकता है कि ये खुले में फल सब्जी बेचने वाले यानी रोज कमाकर खाने वाले लोगों को ये छूट दी गई है. वाजिब भी है लेकिन क्या इनकी या इनके संपर्क में आने वाले लोगों की सुरक्षा का ध्यान रखा जा रहा है. सिटी बस, टैक्सी, मेट्रो आदि को भी लॉकडाउन के दायरे से बाहर रखा गया है. अब समझ ये नहीं आ रहा है कि जब सभी लॉक हैं तो इन सभी चीजों को डाउन क्यों नहीं रखा गया है जबकि हकीकत ये है कि लॉकडाउन के पहले ही दिन सड़कों पर आवाजाही सामान्य दिनों की तरह ही रही. कहीं कोई सख्ती नहीं दिखाई दी.
रोजाना कमाई करने वाले या गरीब दबके को इस बार सरकार मुफ्त राशन नहीं बांट रही, इसलिए इन्हें कमाने की छूट दे रखी है, लेकिन मिडिल क्लास तबके का क्या, जो पहले से कर्जे के नीचे दबा बैठा है. वो तो इस आस में बैठा है कि महीने के आखिर में सैलरी आएगी तो घर की किश्त, बिजली पानी टेलीफोन का बिल, बैंक का कर्जा आदि चुकाने को मिलेगा क्योंकि सरकार तो इन चीजों पर किसी तरह की छूट देने नहीं वाली. सरकार का मत है कि जान है तो जहान है लेकिन अगर घर बैठने से कोरोना से बच भी गए तो ये खर्च और कर्जे उन्हें वैसे भी मार ही डालेंगे.
यही चीज दुकानदारों के साथ है. किराने की दुकान जहां सबसे ज्यादा भीड़ पड़ती है, वहां कोरोना नहीं है. दूध मंडी, सब्जी मंडी आदि जहां खुले में सारा सामान पड़ा है, सैंकड़ों की संख्या में लोग बिना किसी सेफ्टी के घूम रहे हैं, वहां महामारी नहीं है लेकिन जूते चप्पल, कपड़े, स्टेशनरी या फिर अन्य दुकानें जहां इस समय न के बराबर ग्राहक आ रहे हैं, उन्हें बंद करा दिया गया. छोटे मोटे स्टार्टअप जो हाल में लंबे समय बाद खुले हैं, उन्हें लॉकडाउन के दायरे में लाया गया है. पिछले लॉकडाउन का असर ये रहा कि लाखों लोग प्रदेश में ही बेरोजगार हो गए, देश में बेरोजगारी का आंकड़ा 13 करोड़ से अधिक है. इस बीच फिर से लॉकडाउन क्या बेरोजगारी को बढ़ाने या भूखों मरने का संकेत नहीं दे रहा है. बाकी जो बचे हैं, वे भी कर्ज में डूबे जा रहे हैं और भूखों मरने की नौबत पास आती जा रही है.
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इसी कड़ी में एक दैनिक समाचार पत्र ने एक खबर छापी है जिसके मुताबिक पिछले लॉकडाउन से पहले देश में करीब 10 करोड़ मिडिल क्लास फैमली थी जो अब घटकर करीब साढे छह करोड़ रह गई है. वजह- बाकी के लोग रोजी रोटी और जॉब छूट जाने से गरीब तबके में शामिल हो चुके हैं. यानी करीब साढ़े पांच करोड़ लोग मध्यमवर्गीय दायरे से नीचे आ गए हैं. पहले लॉकडाउन तक गरीबों को मिल रही मुफ्त सुविधाओं के चलते लोगों को बड़ा आराम था लेकिन अब तो मिडिल क्लास भी गरीब बन गया है लेकिन इस बार सरकार कुछ नहीं दे रही तो उन पर तो दोहरी मार पड़ रही है.
न्यूज ब्रीथ का तो यही मानना है कि महामारी से निपटने का लॉकडाउन कोई हल नहीं है क्योंकि लोगों के घर में रहने से कोरोना का वायरस अपनी जगह नहीं छोड़ने वाला है. इससे निपटने के लिए जागरूकता और सख्ती की जरूरत है, रोजी रोटी को लॉक करने की नहीं. न्यूज ब्रीथ सरकार से अपील करती है कि अपने मोटी तनख्वाह वाले नुमाइंदों से लॉकडाउन का सुझाव न लेकर इससे निपटने और आर्थिक स्थितियां मजबूत करने के सुझाव मांगे. इसके साथ ही मिडिल क्लास को जीने का मौका छीनने के बजाए नए स्टार्टअप पर फोकस करें तो शायद राजस्थान की जनता कोरोना के साथ साथ अपने जीने पर भी ध्यान दे सके.