कांग्रेस में गांधी परिवार के वर्चस्व व सियासी भविष्य की पटकथा लिखेंगे असम-केरल के चुनावी नतीजे

  • गांधी परिवार की कांग्रेस में वर्चस्व बनाए रखने की ‘अग्नि परीक्षा’ होगी असम और केरल के चुनावी नतीजे, अगर पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा तो पार्टी के विद्रोही नेता ही लिख देंगे गांधी परिवार के करिश्मे के अंत की पटकथा, गर ऐसा हुआ तो देश के राजनीति पटल से हो जाएगा कांग्रेस का पूर्ण सफाया

NewsBreatheSpecial. केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की जंग शुरू हो चुकी है. असम और केरल में चुनाव संपन्न हो चुके हैं जबकि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों को लेकर कई चरण खत्म हो चुके हैं. चुनाव परिणाम 2 मई को आएंगे यानि करीब करीब एक महीना शेष है. इन चुनावों में जहां बीजेपी ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है, वहीं कांग्रेस के स्टार प्रचारक और सर्वेसर्वा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी केरल और असम में जमकर पसीना बहा रहे हैं. ऐसा इसलिए भी है कि राहुल गांधी केरल से सांसद हैं और लचर हाल में ढोल रही कांग्रेस का असम-केरल के चुनावी नतीजे में प्रदर्शन खराब रहा तो कांग्रेस की राजनीति के समंदर में हिचखोले खाती खिवैया कहीं डूब ही न जाए. इसी डर के चलते राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने असम और केरल जीतने के लिए अपना पूरा दमखम लगा दिया है.

अपने ही असंतुष्ट नेताओं से घिरी हुई कांग्रेस पार्टी और उससे भी ऊपर गांधी परिवार के लिए असम और केरल यह दोनों राज्य जीतने बहुत महत्वपूर्ण हैं. कांग्रेस में पिछले वर्ष से जारी उठापटक अभी भी बरकरार है. पार्टी के 23 असंतुष्ट नेता भी इन्हीं विधानसभा चुनावों पर निगाहें लगाए हुए हैं. सही मायने में असम और केरल के चुनाव परिणाम गांधी परिवार के लिए अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे. यही नहीं, यह दोनों राज्य कांग्रेस में गांधी परिवार के वर्चस्व और सियासी भविष्य की पटकथा भी लिखेंगे.

खुद सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका गांधी भी इस बात को भली भांति समझ रहे हैं कि यह विधानसभा चुनाव के नतीजे निर्णायक होंगे. यही वजह है कि पिछले 2 महीनों से राहुल गांधी दक्षिण भारत में अपनी और पार्टी की सियासी जमीन को मजबूत करने में जुटे हुए हैं. राहुल गांधी ने तो केरल के वायनाड को ही अपनी नई अमेठी मान लिया है. यहीं से राहुल दक्षिण के राज्यों में पार्टी का जनाधार को बढ़ाने में लगे हुए हैं. पिछले कुछ महीनों से राहुल गांधी को कई बार केरल में मछुआरा समाज के साथ देखा गया है.

उक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए और टूटती कांग्रेस को संभालने के लिए इसी को ध्यान में रखते हुए प्रियंका गांधी ने भी असम में कई ताबड़तोड़ चुनावी जनसभाएं की हैं. हालांकि खराब स्वास्थ्य होने की वजह से कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी इन पांचों राज्यों में प्रचार करने के लिए नहीं जा सकीं. कांग्रेस पार्टी के दो चेहरे, राहुल और प्रियंका गांधी इन चुनाव में खुद को दो राज्यों पर केंद्रित करके चुनाव प्रचार कर रहे थे.

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यह तो जगजाहिर है कि कांग्रेस की वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद से ही पार्टी अपने नेतृत्व की लड़ाई लड़ती आ रही है. तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था और तब से लेकर अभी तक पार्टी अपने पूर्णकालिक अध्यक्ष का इंतजार ही कर रही है. कांग्रेस के नेतृत्व पर पार्टी में आपसी गुटबाजी, विद्रोह और बगावत से गांधी परिवार जकड़ा हुआ है. (असम-केरल के चुनावी नतीजे)

पिछले करीब आठ महीनों से पार्टी में उठते विद्रोह और बढ़ते असंतोष के बीच सोनिया गांधी फिलहाल औपचारिक रूप से नेतृत्व संभाले हुए हैं. अब असम और केरल में जहां कांग्रेस सबसे ज्यादा उम्मीद लगाए बैठी है. अगर इन राज्यों में पार्टी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती है तो राहुल प्रियंका और सोनिया गांधी के लिए पार्टी को संभालना आसान नहीं होगा, क्योंकि असंतुष्ट नेताओं का एक बड़ा तबका आज भी गांधी परिवार की खुलकर खिलाफत करने में लगा हुआ है. गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा समेत कई दिग्गज नेता राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठा चुके हैं. हालांकि पार्टी ने भी इन नेताओं को पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव प्रचार से दूर ही रखा हुआ है लेकिन इन सभी नेताओं की चुप्पी कहीं न कहीं शांत बैठे ज्वालामुखी की तरह है जो अंदर ही अंदर भड़क रही है.

यहां हम आपको बता दें कि कांग्रेस ने पिछले महीने असम, केरल और पश्चिम बंगाल के चुनाव में प्रचार के लिए 30 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की थी. गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा और मनीष तिवारी समेत आदि नेताओं को स्थान नहीं दिया गया, जिससे इन नेताओं की नाराजगी को और बढ़ा दिया है. फिलहाल यह असंतुष्ट नेता इन राज्यों के चुनाव परिणाम तक ‘खामोश‘ नजर आ रहे हैं. ऐसे में केरल और असम में कांग्रेस का खराब प्रदर्शन रहा तो गांधी परिवार के लिए और मुश्किलें बढ़ेंगी. यानी सही मायने में असम-केरल के चुनावी नतीजे राहुल और प्रियंका के लिए भविष्य की सियासत में निर्णायक भूमिका निभाएंगे.

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ऐसे में 2 मई को आने वाले चुनाव परिणामों में अब देखना होगा राहुल गांधी और प्रियंका इन राज्यों में हारी हुई पार्टी को कितना मजबूत बना पाए हैं और क्या जनादेश पार्टी के पक्ष में ला पाने में सफल हो पाते हैं. वहीं अगर असम और केरल में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहता है तो गांधी परिवार के करिश्मे के अंत की पटकथा पार्टी के विद्रोही नेता ही लिख देंगे, जिसके बाद कांग्रेस में काफी तोड़फोड़ भी देखने को मिल सकती है.

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