ये लड़ाई रोटी की है जनाब…
NewsBreatheTeam. उत्तराखंड के रुद्रपुर में जब किसान नेता राकेश टिकैत, डा. दर्शन पाल पहुंचे तो किसानों का हुजूम इंतजार में था।…नासमझ सरकार अवैधानिक तरीके से पास किए कृषि कानूनों को वापस लेने को तैयार नहीं है। अब यह आंदोलन कभी भी उग्र रूप धारण कर सकता है। तब तोहमतें मड़ी जाएंगी। सरकार समर्थक लाठी मारो, फांसी दो की बातें करेंगे। तीन महीने से घर छोड़ सड़कों पर लड़ रहे किसानों की बात मूर्ख समाज के समझ न आ रही।
…हिमायल की तलहटी में बसे तराई के इस मैदान में पर्वतीय इलाकों के समझदार लोग भी पहुंचे हैं। पंजाबी और पर्वतीय जनवादी गीतों से पंचायत शुरू हुई, ढोल नगाड़े भी बजे। एक ही आवाज है न रोजगार बचा न खेती, लड़ते हुए हम जीतेंगे।…प्रदेश के पर्वतीय इलाकों की जमीन पहले ही बर्बाद कर दी गई है। अब यहां कोई किसान ऐसा न बचा जो खेत की उपज से सालभर परिवार पाल सके। पहाड़ और मैदान को मिलाने वाला भावर क्षेत्र मकानों से भर चुका है। यहां अब खेती की जमीन खत्म हो चुकी है। मैदानी इलाकों में ही खेती बची है, सरकार ने इस जमीन की नीलामी की तैयारी कर दी है।
रुद्रपुर के पास ही बाजपुर में बड़े पैमाने पर खेती होती है। यहां के किसान संपन्नता की ओर बढ़ रहे थे, पर सरकार ने 20 गांवों की 58.38 एकड़ कृषि भूमि को लगभग छीन लिया है। इसे अवैध करार दिया जा रहा है। जल्द यहां के किसान कोर्ट-कचहरी के चक्कर में जमीनें बेच डालेंगे।
…मैदानी इलाकों में बसी थारू, बुक्सा जनजातियों की जमीनें पहले ही कब्जा कर ली गई हैं। दलित आबादी के पास उत्तराखंड में भूमि है ही नहीं। इस प्रदेश की और भी बहुतेरी बातें हैं। फिलहाल किसान आंदोलन से देशवासियों को सरकारी नीतियों की सच्चाई पता चलने लगी है। समझ आ रहा है कि हर कानून मेहनत करने वालों के खिलाफ है। भाजपा सरकार ने अवैधानिक तरीके से कृषि कानून बनाए हैं, इन्हें संसद में भी पास नहीं किया गया।
..आंदोलन व्यापक रूप लेने लगा है, जल्द यह उग्र होगा..
नोट: ये लेख चंद्रशेखर जोशी जी का है। जोशी जी जाने माने पत्रकार है। ये लेखक के अपने विचार है। इनसे किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की गई है।