पेट्रोल को 65 रुपये होने में 65 साल लगे, 100 होने में सिर्फ 6 साल..
- पहले की लुटेरी सरकार हमें एलपीजी 400 और पेट्रोल 70 रुपये में दे रही थी. फिर हमने एक ईमानदार सरकार चुनी जो एलपीजी 800 और पेट्रोल 100 रुपये में दे रही है
NewsBreatheSpecial. बड़े बुजुर्ग हमेशा कहते हैं ‘हमारे जमाने में ऐसा, हमारे जमाने में वैसा.’ वे कभी भी वर्तमान समय की बात नहीं करते केवल गुजरे जमाने में ही खुश रहते हैं. कुछ ऐसा ही इस समय जनता के साथ हो रहा है. अकसर कहा जाता है कि कांग्रेस सरकार हमेशा महंगाई लेकर आती है लेकिन इस बार तो उल्टा हो गया. जनता ने ढोल नगाड़े बजाकर उनके प्रिय नेता नरेंद्र मोदी को दूसरी बार प्रधानमंत्री बनाया लेकिन ये क्या हो गया. उन्होंने तो पिछले एक साल में ही दिन में जनता को तारे दिखा दिए.
2013 में पेट्रोल 72 रुपये और गैस सिलेंडर केवल 400 रुपये का था, अब पेट्रोल 100 के पार जाने को है और गैस सिलेंडर 800 रुपये पर आ चुका है. यानि आजादी के बाद पेट्रोल को 65 रुपये होने में 65 साल लगे, उसी पेट्रोल को 100 रुपये होने में सिर्फ 6 साल का वक्त लगा. डीज़ल भी पेट्रोल से आगे निकलने की होड़ में कुछ ऐसे लगा है जैसे रोहित शर्मा विराट कोहली का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए ही क्रिकेट खेल रहा हो. ये ही तो मोदी जी का कमाल है क्योंकि मोदी है तो मुमकिन है.
खैर, जो हुआ सो हुआ फिर भी हमारा यही मानना है कि ये बाते किसी भक्त के सामने न कहिएगा. उनकी बानगी तो ये है कि हाल में किसी ने फेसबुक पर पोस्ट किया, ‘अपनी देशभक्ति दिखाने का समय आ गया भक्तों. पेट्रोल 100 रुपये होने का कौन कौन समर्थन करता है.’ अब शायद सच्चा भक्त होने का फल उन्हें उनके नेता रूपी भगवान देते होंगे. आखिर उनके भगवान ने अच्छे दिनों के आने की बात उन्हें वादे रूपी प्रसाद में मिलाकर जो खिलाई है.
बानगी तो ये भी बड़ी विचित्र है कि अगर एक सामान्य व्यक्ति किसी भक्त से शर्त लगा सकता है कि किन्हीं ऐसी दो चीजों के दाम बताओ जिसकी कीमत पिछले एक साल में कम हुई हो. कोई कितना भी बड़ा भक्त हो, उसके भगवान उसकी मदद नहीं करने वाले. शर्त लगाने वाली की जीत और दूसरे की हार तय है. इसके बावजूद भक्त शर्त लगाने को तैयार हो, ये हमारा मानना है. फिर चाहे वो अकेले में आप ही अपनी दुर्बुद्धि पर सोच-सोचकर ही हंसते रहे हों.
बजट पेश लेकिन आम आदमी का इससे क्या लेना-देना?
इन दिनों यही हो रहा है. सोशल मीडिया की भाषा ट्रोल करने वाले बेहतर समझते हैं. शायद वे भी समझ रहे हों कि जनता उनके भगवान की किस तरह ऐसी-तैसी कर रहे हैं. ऐसी ही कुछ बानगियों पर जरा गौर फरमाएं…
- पहले की लुटेरी सरकार हमें एलपीजी 400 रु में दे रही थी. फिर हमने एक ईमानदार सरकार चुनी जो एलपीजी 800 रु में दे रही है.
- अमिताभ बच्चन दूरदर्शी हैं. इसीलिए उन्होंने 2013 में ही भांप लिया था और कहा था कि वह दिन दूर नहीं जब लोग गाड़ी कैश से खरीदेंगे और पेट्रोल लोन लेकर भरेंगे.
- कालाधन वापस आए तो पेट्रोल 30 रुपये में मिलेगा.
- अक्कड़-बक्कड़ बंबे बो, डीजल नब्बे, पेट्रोल सौ, सौ में लगा धागा, सिलेंडर उछल के भागा.
- 65 रुपये होने में पेट्रोल को 65 साल लगे और 100 रुपये होने में सिर्फ 6 साल. बोलो, तरक्की हुई कि नहीं?
- एक बेरोजगार व्यक्ति को गाड़ी में धक्का लगाने को रख लिया है. ये पेट्रोल से सस्ता पड़ता है. उसकी मदद भी हो जा रही है.
- 1 लीटर पेट्रोल के दाम में 2 लीटर से ज्यादा दूध आ रहा. दूध पीकर साइकिल चलाएं, सेहत बनाएं, आत्मनिर्भर भारत बनाएं.
- अब आप कहीं शादी-ब्याह में जाएं, तो लिफाफे में 101 रुपये देने की जगह पेट्रोल भी दे सकते हैं.
- पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने पर हाहाकार क्यों? आप ये दोनों कहीं भी जाकर भरवा सकते हैं. मुंबई में ज्यादा दाम है, तो मिजोरम चले जाएं. यह उसी तरह है जैसे किसान अपना अनाज कहीं भी बेच सकता है.
- हमारे यहां की सड़कें बनना फिलहाल इसलिए रोक रखा गया है कि पेट्रोल-डीजल-गैस से सरकार को हो रही कमाई से सुदूर के इलाकों की सड़कें बन रही हैं. वहां का विकास तो हम नहीं देख पाएंगे. पर जब वे इलाके विकसित हो जाएगे, तब हमारा नंबर आएगा.
- अरे, क्या करेंगे सस्ती लेकर? कोई रोजी-रोजगार तो है नहीं. कोरोना की वजह से यात्राएं भी नहीं करनी हैं. इसलिए कहीं जाना-आना तो है नहीं. दाम बढ़े कि घटे, हमें क्या करना?
- नेपाल में इनके दाम कम हैं. वहां जाने के लिए वीजा तो लगता नहीं. सीमाओं पर रहने वाले हम लोग वहीं जाकर टैंक फुल करा लेते हैं. सस्ता तो मिल ही जाता है, उन्होंने भारत के साथ जो किया है, इस तरह उसका जवाब भी हम दे आते हैं.
- सरकार में नितिन गडकरी के इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार हो रहा है कि दूरी किलोमीटर में बताने वाले पत्थरों को ही पास-पास लगवा दो ताकि लोगों को लगे कि गाड़ी का एवरेज पुराना ही है.