साभार – ऋषिकेश राजोरिया
लेखन में लेखक के स्वयं के विचार हैं. लेखक जाने माने पत्रकार हैं. लेख में किसी तरह की कोई हेरफेर नहीं की गई है.
बजट पेश लेकिन आम आदमी का इससे क्या लेना-देना?
- एक्सपर्ट व्यू: महंगाई कम करने की कोई बात बजट में नहीं, सालाना पांच लाख रुपए तक कमा लेने वालों को आयकर से छूट लेकिन लोगों की आय कैसे बढ़ेगी, इसकी रूपरेखा तय नहीं
NewsBreatheTeam. केंद्रीय वित्त मंत्री ने निर्मला सीतारमण ने केंद्र सरकार का बजट पेश कर दिया। इसके मुताबिक केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2020-21 में 30,42,230 करोड़ रुपए खर्च करेगी। उसकी आमदनी (उधार के अलावा) 22,45,894 करोड़ रुपए अनुमानित है। इस तरह 16.3 फीसदी घाटे का बजट पेश किया गया है। सरकार ने जीडीपी 10 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया है। बजट में विभिन्न मंत्रालयों के लिए आबंटन है। सबसे ज्यादा 129 फीसदी आबंटन संचार मंत्रालय के लिए है। बहरहाल सरकार ने जो आमदनी बताई है, उसमें विनिवेश प्रमुख है। यह देश जिन महत्वपूर्ण संस्थानों के दम पर खड़ा हुआ है, उनकी जिम्मेदारी से सरकार को हटाने की तैयारी मोदी सरकार ने कर ली है।
बजट में बड़ी-बड़ी बातें हैं, जिनसे इस देश के 80 करोड़ साधनहीन लोगों का कोई लेना देना नहीं है। उन्हें गरीब बनाए रखने का पुख्ता इंतजाम मोदी सरकार ने कर दिया है, जिससे कि उनकी पार्टी को धन की ताकत पर अनंतकाल तक बहुमत मिलता रहे। लोगों को गरीब बना दो, फिर उन्हें थोड़ा-थोड़ा रुपया बांटकर सपने दिखाते रहो। भारत जैसे लोकतंत्र में यह शासन करने का तरीका बन गया है। मोदी सरकार क्या कर रही है, समझ में नहीं आता। बजट का विश्लेषण हो रहा है। हर साल होता है। सीतारमण ने अंग्रेजी में बजट पढ़ा और बीच में कुछ तमिल पंक्तियां भी बोली। हिंदी में उन्होंने राष्ट्रपतिजी शब्द का प्रयोग किया। मिस्टर प्रेसिडेंट नहीं कहा।
सरकार ने अपना खर्च तय कर रखा है। नई दिल्ली की बसावट को बदलना है। नया संसद भवन बनाना है। देश के किसानों की उपज को समेटकर उसका व्यापारीकरण करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर डवलप करना है। सामान को तेजी से यहां से वहां पहुंचाने के लिए सड़कों का जाल बिछाना है। शिक्षा की व्यवस्था ऐसी बनानी है कि आम आदमी के बच्चे पढ़ाई के लिए तरस जाएं। पूरे देश की पूंजी सिमटकर गिनती के लोगों के पास होनी चाहिए, जिससे कि विरोधियों की चूं चपड़ से बचा जा सके। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश की जनता ने ऐतिहासिक फिजूलखर्चियां देखी हैं। और अब नया संसद भवन बनाने के नाम पर मनमाने तरीके से संसद भवन और इसके आसपास के इलाके का रूपांतरण। यह सब क्या है?
स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, सीखने-पढ़ने की तमाम जगहों पर सन्नाटा कायम कर दिया गया है। पहले कोरोना, लॉकडाउन, मास्क, सेनिटाइजर, सोशल डिस्टेंसिंग, कर्मचारियों की छंटनी, उद्योग धंधे ठप, करोड़ों लोगों का शहरों से गांवों की तरफ पलायन। इससे पहले नोटबंदी के दौरान बैंकों में भ्रष्टाचार। देश की अधिकांश प्रचलित मुद्रा में ऐतिहासिक स्तर की हेराफेरी। फिर जीएसटी। तरह-तरह के एप। ऑनलाइन कारोबार का विस्तार। पूंजी के प्रवाह की बदलती दिशा। आम आदमी अपने स्तर पर अपनी योग्यता और क्षमता से देश के विकास में योगदान दे सके, इसकी संभावनाएं समाप्त की जा रही हैं। विकास का ठेका पूरी तरह कॉर्पोरेट कंपनियों के पास रहेगा। आम आदमी के पास मुद्रा की उपलब्धता जरूरी होगी और गांधीजी की विचारधारा का अंतिम संस्कार हो जाएगा।
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वित्त मंत्री ने विभिन्न मंत्रालयों को आबंटन करते हुए बहुत सी बातें कहीं। अर्थव्यवस्था को उस स्वरूप में प्रस्तुत किया, जैसी कि वह वास्तविक रूप में नहीं है। बजट के बाद सेंसेक्स ने अपनी चढ़ाई जारी रखी। वह 2000 अंकों से ज्यादा उछला। दुनिया में भ्रम फैला कि भारत की अर्थव्यवस्था जोरदार है। कोरोना के बावजूद देश अपने दम पर आगे बढ़ रहा है। मोदी जी जो कर रहे हैं अच्छा कर रहे हैं। बजट का लब्बोलुआब यही है। खर्च ही खर्च है। सरकार के लिए भी और आम आदमी के लिए भी। महंगाई कम करने की कोई बात बजट में नहीं है। साल में पांच लाख रुपए तक कमा लेने वालों को आयकर से छूट दी गई है। यह अच्छी बात है। लेकिन लोगों की आय कैसे बढ़ेगी, इसकी रूपरेखा नहीं है।
इस बीच किसान आंदोलन प्रशस्त हो रहा है और उसे विभिन्न वर्गों को समर्थन मिलने लगा है। गाजीपुर बॉर्डर पर फिर मेले जैसी स्थिति है। किसान आंदोलन को बदनाम करने के प्रयास पहले की तरह जारी हैं। गणतंत्र दिवस पर लालकिले की घटना कई लोगों के दिमाग का ईंधन बनी हुई है। घटना में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई की खबरें आ रही हैं। देश बेचैनी के दौर से गुजर रहा है, जिसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में पूरी बेफिक्री के साथ भावहीन मुद्रा में अच्छी अंग्रेजी में बजट भाषण पढ़ दिया।