जयपुर की जीवन धारा मानी जाने वाली द्रव्यवती नदी बहा रही अपनी दशा पर खून के आंसू

  • गुलाबी नगर की नई तस्वीर दिखाने के लिए तैयार किया गया द्रव्यवती नदी प्रोजेक्ट चढ़ रहा राजनीति की भेंट, जिस रफ्तार से काम हो रहा और जो दयनीय हालात अभी हैं, उसके चलते तो काम राम भरोसे ही है…

NewsBreatheSpecial. द्रव्यवती नदी, जिसे दो साल पहले तक गुलाबी नगरी की शान माना जा रहा था. 2016 में जयपुर के बीचो-बीच से होकर गुजरने वाले अमानीशाह नाले को फिर से पुरानी द्रव्यवती नदी का खोया हुआ वैभव देने की कोशिश में राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने (Vasundhara Raje) द्रव्यवती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट (Dravyavati River Project) की शुरुआत की थी. 47 किमी. लंबे इस प्रोजेक्ट का उदघाटन भी वैसा ही हुआ, जैसा होना चाहिए था लेकिन राजस्थान में सत्ता बदलते ही नए जयपुर की नई तस्वीर और जीवन धारा कही जाने वाली द्रव्यवती नदी अब अपने ही हाल पर आंसू बहा रही है.

शुरुआत से बात करें तो जयपुर को प्रदेश और देश में ही नहीं बल्कि विश्वभर में सबसे सुनियोजित शहरों में से एक माना जाता है. रियासतकालीन समय में नाहरगढ़ और आमेर की पहाडियों से होते हुए शहर में 47 किमी. लंबी जलधारा बहती थी जिसे ही द्रव्यवती नदी कहा जाता था. शहर के बढ़ने के साथ साथ नदी छोटी होती गई और बाद में मृत प्राय हो गई जिसे हम अमानीशाह नाले के तौर पर जानते हैं. चारों ओर अतिक्रमण, सीवरेज और गंदगी के चलते अमानीशाह नाला भी एक गंदे नाले के तौर पर बहने लगा. बारिश आने पर ये भयानक रूप ले लेता जो शहर की सुंदर छवि को धूमिल कर रहा था.

इसी बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने जिम्मेदारी लेते हुए इस बारे में विचार किया और गुलाबी नगरी की विरासत एवं सुंदरता को बचाने के लिए द्रव्यवती रिवर फ्रंट परियोजना का विचार रखा. 1680 करोड़ रुपये की ये परियोजना अपने आप में अहम परियोजना थी जो केवल शहर की सुंदरता को बनाए रखने के लिए थी.

दो साल के गहन अध्ययन के बाद परियोजना धरातल पर आई और जुलाई, 2016 में टाटा कंपनी के द्वारा प्रोजेक्ट को शुरु किया गया. करीब 47.5 किमी की लंबाई वाली इस रिवर फ्रंट में 5 सीवरेज ट्रिटमेंट प्लांट लगाए जाने थे जिनमें 300 छोटे बडे नालों के साथ सीवरेज का पानी रिसाइकिल कर रिवर में छोड़ा जाना था ताकि सालभर द्रव्यवती नदी में स्वच्छ पानी बहता रहे.

तेज बारिश होने की स्थिति में पानी के निकास की भी व्यवस्था प्रोजेक्ट में की गई थी. साथ ही साथ 5 लाख वर्ग मीटर में ग्रीन बैल्ट और नदी के किनारों पर साइक्लिंग और वाॅकवे की सुविधा भी तैयार की जानी थी. जुलाई, 2018 में आधी अधुरी योजना का वसुंधरा जी द्वारा उद्घाटन भी कर दिया गया और उम्मीद जताई गई कि ये रिवर फ्रंट एक नदी बनकर शहर की सुंदरता को चार चांद लगाएगा लेकिन ढाई साल बाद भी ऐसा कुछ होते नहीं दिख रहा है.

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पहली समस्या तो ये है कि आज भी शहर के लोग इसे नदी की जगह अमानीशाह नाले का ही बदला रूप मानते हैं इसलिए इसकी स्वच्छता की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा. किनारों पर बने तीन पार्क में वाॅक के लिए आने वाले लोग कच्छा इसी पानी में डाल रहे हैं. 300 छोटे बडे नालों के साथ कंपनियों का वैस्ट भी इसी पानी में छोड़ा जा रहा है जिसके चलते कई जगहों पर कीचढ की इतनी मोटी परत जम गई है कि पत्थर भी फेंके तो वहीं अटक जाए. गुर्जर की थडी इलाके में पानी में वैस्ट मेटेरियल पानी में बहाया जा रहा है, तो दुर्गापुरा इलाके में काई और कीचढ़ की ढाई इंच तक मोटी परत साफ देखी जा सकती है. हसनपुरा इलाके में तो ये अभी भी अमानीशाह नाला ही कहलाने योग्य है.

टोंक रोड और मानसरोवर इंस्ट्रीयल इलाके में जरूर द्रव्यवती का वो रूप देखने को मिलता है जो सच में जयपुर की एक नई तस्वीर को दिखाता है लेकिन अन्य स्थानों पर ये सपने के साकार होने से काफी परे है. वर्तमान सरकार हालांकि प्रोजेक्ट पर काम कर रही है. गंदगी हटाने के लिए भारी भरकम आधुनिक मषीनें लगाई गई हैं लेकिन एक तरफ सफाई हो रही है तो दूसरी तरफ उससे चार गुना ज्यादा कचरा मौजूद है.

कहने का सीधा मतलब जिस रफ्तार से काम होना चाहिए था, वो रेंग रेंग कर चल रहा है. कुल मिलाकर द्रव्यवती नदी का काम राम भरोसे है. यही वजह है कि जिस काम को दो ढाई साल में पूरा हो जाना चाहिए था, वो साढे चार सालों तक में नहीं हो पाया है. काम से भी ज्यादा, इस रिवर फ्रंट की दषा पर अब विपक्ष ने भी सवाल उठाने बंद कर दिए हैं. इस पूरे साल कोरोना संकट के चलते प्रोजेक्ट के काम को पहले से अधिक जंग लग गया है.

ऐसे में न्यूज ब्रीथ (News Breathe) सरकार और जवाहदेह लोगों से अपील करता है कि गुलाबी नगर की आबोहवा और सुंदरता को निखारने के लिए उठाए गए इस कदम को गंभीरता से लें और जयपुर की इस नई जीवन धारा पर थोड़ा बहुत ध्यान दें. क्या पता, द्रव्यवती नदी पहले की तरह तो नहीं लेकिन एक नई इबादत ही लिखने में कामयाब हो जाए.

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