कब तक आरक्षण की बांसुरी बजाती रहेंगी सरकारें, अब तो रहम करो
- सामान्य वर्ग और आरक्षित जातियों की पात्रता के बीच करीब करीब दोगुना अंतर, गणित, अंग्रेजी और विज्ञान जैसे विषयों में 36 अंक लाने वाले बच्चों को भलां क्या भविष्य दे सकता है?
NewsBreatheTeam. देश को आजाद हुए 74 वर्ष हो गए हैं. राज्य हो या देश, कई सरकारें आईं और गईं, कई नियम कानून कायदे तोडे गए, बदले गए और खत्म किए गए लेकिन एक ऐसा नियम या यूं कहें कि एक बेशकीमती रियायत जो एक वर्ग विशेष को दी जा रही है और वो वर्ग इन 74 सालों से उस रियायत की मलाई खाए जा रहा है, वो है ‘आरक्षण’. एक ऐसी मीठी छुरी जो सामान्य वर्ग की पीठ पर नहीं बल्कि सीने पर घोंपी जा रही है. इस छुरी के लगने के बाद ‘आह…’ तो निकलती है लेकिन किया कुछ नहीं जा सकता. इस आरक्षण का जहरीला कीडा राज्यों में ही नहीं बल्कि देशभर में मौजूद है और अब हर जड में फैलता जा रहा है. गौर करने लायक बात ये है कि हुकमरान खुद इस जहर को पाल रहे हैं और आरक्षण वाले भारी भरकम तराजू को अभी भी आंख बंद करके हल्का बताने की कोशिश करने में लगे हैं. इस आरक्षण ने न ठोह छोडी और न ही नौजवानों का भविष्य. यहां तक की शिक्षा तक को नहीं छोडा जो नौजवानों का भविष्य बनाते हैं. हाल में राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के एक और कदम ने आरक्षण की जडों को मजबूत तो किया ही है, शिक्षा के बलबूते आने वाली नस्ल को कमजोर करने का काम भी किया है.
बात हो रही है शिक्षक पात्रता भर्ती परीक्षा (REET) में हुए नए बदलाव की. राजस्थान के शिक्षामंमंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने एक आदेश जारी करते हुए रीट की पात्रता प्राप्त करने के लिए अलग अलग श्रेणियों में प्राप्तांकों में 5 से लेकर 20 प्रतिशत तक की छूट देने का फरमान सुनाया है. पहले रीट परीक्षा में पास होने की सभी की पा.ता 60 प्रतिशत थी. अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और सामान्य वर्ग सभी वर्गों के लिए पात्रता 60 प्रतिशत ही थी लेकिन अब इस नियम पर आरक्षण की कैची ऐसी चलाई कि सब कुछ गुड गोबर हो गया. नए नियम के बाद से एसटी, एससी को पास होने के लिए केवल 36 प्रतिशत और ओबीसी को 55 फीसदी अंक लाने होंगे. यानि देखा जाए तो सामान्य वर्ग की तुलना में एसटी और एससी को आधे नंबर लाकर आसानी से नौकरी मिल सकती है. नौकरियों में तो पहले से 50 फीसदी आरक्षण मिला हुआ है, अब पात्रता परीक्षा में भी ये फेरबदल कर आरक्षण से मिलने वाली मलाई को और गाढा कर दिया है और सामान्य वर्ग का भविष्य और कठिन कर दिया है.
एससी, एसटी वर्ग की ओर से इसकी मांग लंबे समय से की जा रही थी. मांग की भी क्यों नहीं जाए, आखिर शिक्षण से संबंधित नौकरी है ही इतनी आराम पसंद. शिक्षण एक व्यवसाय ही तो है लेकिन गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों में 36 प्रतिशत लाने वाले शिक्षक बच्चों को कौनसा भविष्य दे पाएंगे, ये हमारी तो समझ से बाहर है. भर्तियों में आरक्षण तो पचाया जा सकता था लेकिन अब तो पा..ता में भी यही आरक्षण घोला जा रहा है. सीधे सीधे सामान्य वर्ग पर दोहरी मार दी जा रही है.
इसी से जुडा एक किस्सा अनायास याद आ रहा है. एक या दो महीने पहले की ही बात है जब डूंगरपुर में एससी, एसटी समुदाय के युवकों ने सामान्य वर्ग से जुडी 1200 से अधिक तृतीयों श्रेणी शिक्षक के रिक्त पडे पदों को आरक्षित जाति से भरने की मांग को लेकर हफ्तेभर जमकर उत्पात मचाया था. यहां तक की कई किलोमीटर तक सडक पर कब्जा कर पुलिसकर्मियों पर पत्थर तक फेंके थे. इसी दौरान सडक के आसपास दुकानों, पेट्रोल पंप और यहां तक की घरों में घुसकर तोडफोड और लूट खसोट की थी. इसी जाति से आने वाले बीटीपी के एक विधायक ने तो ये तक कह दिया था कि अगर जनता परेशान हो रही है तो उत्पात रोकने के लिए सरकार मांग क्यों मान नहीं लेती. कुछ दिनों तक चले हंगामे के बाद जैसा कि पूर्व विदित था, समझौता कर लिया गया और हंगामा रूक गया, लेकिन जो लाखों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ, कई पुलिसकर्मी जख्मी हुए, लूट खसौट और दिन दहाडे पेट्रोल पंप लूटा गया, उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई… होनी भी नहीं थी, बस इतिश्री कर ली गई.
‘तेरे हर एक वार पर पलटवार हूं..यूं ही नहीं कहलाता मैं शरद पवार हूं’
इससे पहले वसुंधरा सरकार में एससी और एसटी वर्ग ने बिना किसी कारण भारत बंद का ऐलान किया था और सडक पर हजारों की संख्या में उतर आए थे. सडक पर शांतिपूर्वक रैली निकालने की जगह उत्पात करते हुए ये रैला आगे बढा. सडकें रोकी गई, आसपास की दुकानें लूटी गईं, तोडफोड हुई, आगजनी तक हुई लेकिन तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. यहां तक की बाद में जिन पर कुछ धाराओं के तहत केस लगाए गए, उन्हें भी सरकार द्वारा वापिस ले लिए गए. हाल में गुर्जरों का आरक्षण की मांग को लेकर पटरियों पर 13 दिनों तक दिया गया धरना अभी भी मन में ताजा है. तब भी सरकार चुप रही और कोई एक्शन नहीं लिया गया.
नरेंद्र मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने, तब सभी को आस बंधी कि शायद मोदी जी आरक्षण के जिन्न को खत्म कर देंगे लेकिन यहां तो उल्टा हो गया. पीएम ने तो अपने आपको ही एसटी, एससी बता दिया. जब उन्हें लगा कि ये जहर सामान्य जाति में तेजी से घुलता जा रहा है तो उन्होंने सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देकर चुप करा दिया लेकिन बात वहीं की वहीं बनी रही. माना कि ये आरक्षण का जिन्न कांग्रेस ने पैदा किया था लेकिन इस बीच अटल जी की पांच साल की केंद्र में सरकार थी, उसके बाद पीएम मोदी की 6 साल की सरकार जो आगे भी चार साल रहेगी लेकिन इस आरक्षण से निजात नहीं मिली.
एक तरफ तो खुद बीजेपी किसान कानून को लेकर कह रहे हैं कि बदलाव में कुछ परेशानियां आएंगी लेकिन अंत में सब कुछ भला होगा. इसी तरह हमारे साथ करोडों हिंदुस्तानियों का भी यही कहना है कि एक बार आरक्षण खत्म करने संबंधी कोई कानून लाइए. हम सभी का भी यही मानना है कि शुरुआती में शोर शराबा होगा, कठिनाईयां आएंगी, विरोध होगा लेकिन अंत में सब कुछ अच्छा और बेहतर होगा. यही सपनों का भारत होगा जिसमें कम से कम शिक्षा और शिक्षकों में कोई भेद नहीं होगा.
किस कैटेगिरी को कितने फीसदी अंक पाने पर रीट के लिए मिलेगी पात्रता
सामान्य वर्ग के लिए – 60 फीसदी
एसटी, एससी, ओबीसी, एमबीसी, ईडब्ल्यूएस – 55 फीसदी
एसटी टीएसपी – 36 फीसदी
समस्त श्रेणी की विधवा एवं परित्यक्ता और भूतपूर्व सैनिकों के लिए – 50 फीसदी
दिव्यांगजन – 40 फीसदी
सहरिया क्षेत.. की सहरिया जनजाति – 36 फीसदी