‘तेरे हर एक वार पर पलटवार हूं..यूं ही नहीं कहलाता मैं शरद पवार हूं’
- 80वां जन्मदिन मना रहे शरद पवार, तीन बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनकर सत्ता की बागड़ोर संभाली, सात बार लोकसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किया, महाराष्ट्र विस चुनावों में बीजेपी के चाणक्य को अपनी गुगली में क्लीन बोल्ड कर दिया था
तुम अभी नये हो, मैंने जमाना देखा है।
मैंने उनको खेल सिखाया है, जिनसे तुम सिखे हो।। शरद पवार
NewsBreatheTeam. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार (Sharad Pawar) के लिए ये लाइनें बिलकुल सटीक बैठती हैं. राजनीति का वो योद्धा जिसने राजनीतिक चौसर में अपने 80 साल आज पूरे किए हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में घुले मिले शरद पवार का आज 80वां जन्मदिन है. यंग राजनीतिज्ञों को शरद पवार ने अपने राजनीतिक कौशल का जौहर 2019 में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव के बाद सिखाया जब देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी के चाणक्य अमित शाह ने अंच पंच करके बीजेपी की सरकार बना दी थी. उस समय बीसीसीआई के अध्यक्ष रह चुके शरद पवार ने ऐसी गुगली डाली कि अमित शाह भी क्लीन बोल्ड हो गए. शरद पवार की राजनीति का लोहा तो पीएम नरेंद्र मोदी तक मानते हैं और शरद पवार को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं.
शरद पवार केवल महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में एक बड़ा नाम है. शरद पवार की राजनीति सोच और दांवपेच का अंदाजा केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि केवल 38 साल की आयु में शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन बैठे थे. कांग्रेस छोडने के बाद भी उन्होंने महाराष्ट की राजनीति में अकेले दम पर वो पैर जमाया कि कांग्रेस को खुद उनका साथ मांगना पडा और 16 साल तक मिलकर दोनों ने सरकार चलाई. असली मायनों में देश की राजनीति का असली चाणक्य शरद पवार को माना जाए तो कुछ गलत नहीं होगा. आम तौर पर शरद पवार के लिए कहा जाता है.. (Sharad Pawar Birthday Special)
तेरे हर एक वार पर मैं पलटवार हूं।
यूं ही नहीं कहलाता मैं शरद पवार हूं।।
राजनीति ही नहीं शरद पवार कबड्डी, खो-खो, कुश्ती, फुटबाल और क्रिकेट जैसे खेलों में दिलचस्पी रखते हैं. राजनीति के साथ साथ वे मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन, महाराष्ट्र कुश्ती, कबड्डी, खो-खो एसोसिएशन के अध्यक्ष के साथ महाराष्ट्र ओलंपिक्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इनके साथ ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद् अध्यक्ष का भी कार्यभार उन्होंने निर्वाह किया. वे तीन बार महाराष्ट्र की सत्ता की कुर्सी पर भी काबिज हुए.
शरद पवार का पूरा नाम शरद गोविंदराव पवार (Sharad Govindrao Pawar) है जिनका जन्म 12 दिसम्बर, 1940 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ. उनके पिता गोविंदराव पवार बारामती के कृषक सहकारी संघ में कार्यरत थे और उनकी माता शारदाबाई पवार कातेवाड़ी (बारामती से 10 किलोमीटर दूर) में परिवार के फार्म का देख-रेख करती थीं. पवार ने पुणे विश्वविद्यालय से सम्बद्ध ब्रिहन महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स से पढ़ाई की. शरद पवार का विवाह प्रतिभा शिंदे से हुआ और उनकी एक पुत्र सुप्रिया सुले है जो बारामती संसदीय क्षेत्र से सांसद है.
शरद पवार तीन अलग-अलग समय पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. एक प्रभावशाली नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले शरद पवार केंद्र सरकार में रक्षा और कृषि मंत्री भी रह चुके हैं. उन्होंने सात बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और हर बार विजयश्री उनके साथ रही. अपने छात्र जीवन में वे जरूर औसत छात्र रहे लेकिन राजनीति में उस समय भी सक्रिय रहे. पवार ने केवल 16 साल की आयु में गोवा के स्वतंत्रता के लिए मार्च, 1956 में एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन भी किया था. (Sharad Pawar Birthday Special)
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री यशवंत राव चौहान को शरद पवार का राजनैतिक गुरु माना जाता है. पवार 1967 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बारामती विधानसभा क्षेत्र से चुनकर पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा पहुंचे. सन 1978 में पवार ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और जनता पार्टी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में एक गठबंधन सरकार बनायी और पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. सन 1980 में सत्ता में वापसी के बाद इंदिरा गांधी सरकार ने महाराष्ट्र सरकार को बर्खास्त कर दिया. 1980 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत मिली और ए.आर. अंतुले के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी.
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1983 में पवार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) के अध्यक्ष बने और पहली बार बारामती संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीता. उन्होंने सन 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में भी जीत अर्जित की और राज्य की राजनीति में ध्यान केन्द्रित करने के लिए लोकसभा सीट से त्यागपत्र दे दिया। विधानसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) को 288 में से 54 सीटें मिली और शरद पवार विपक्ष के नेता चुने गए.
शरद पवार की 1987 में फिर से कांग्रेस में वापसी हुई. जून, 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने जब ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकरराव चौहान को केन्द्रीय वित्त मंत्री बनाया तो पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए. 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी. पवार के नेतृत्व में कांग्रेस ने कुल 288 सीटों में से 141 सीटों पर विजय हासिल की लेकिन बहुमत से चुक गई. इसके बाद भी शरद पवार ने 12 निर्दलीय विधायकों से समर्थन लेकर सरकार बनाई और फिर मुख्यमंत्री बने.
1991 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई जिसके बाद देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में नरसिंह राव और एन.डी.तिवारी के साथ-साथ शरद पवार का नाम भी सामने आया. लेकिन कांग्रेस संसदीय दल ने नरसिंह राव को प्रधानमंत्री के रूप में चुना और पवार रक्षा मंत्री चुने गए. मार्च, 1993 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकरराव नायक के पद छोड़ने के बाद पवार 6 मार्च, 1993 को एक बार फिर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने.
शरद पवार के जीवन में एक दौर वो भी आया जब 1993 के बाद शरद पवार पर भ्रष्टाचार और अपराधियों से मेल-जोल के आरोप लगे. ब्रिहन्मुम्बई नगर निगम के उपयुक्त जी.आर. खैरनार ने उनपर भ्रष्टाचार और अपराधियों को बचाने के आरोप लगाए. सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भी महाराष्ट्र वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों को नौकरी से बर्खास्त करने की मांग पर आमरण अनशन किया. पवार पर उनपर स्टाम्प पेपर घोटाले और जमीन आवंटन विवाद जैसे मामलों कें शामिल होने का आरोप भी लगे. विपक्ष ने भी पवार पर इन मुद्दों को लेकर निशाना साधा और इन सभी बातों से पवार की राजनैतिक साख गिरने लगी.
इन सब बातों का असर 1995 के विधानसभा चुनाव में दिखा जिसमें शिवसेना और बीजेपी गठबंधन ने कुल 138 सीटों पर जीत हासिल की. कांग्रेस को केवल 80 सीटें मिली. 1996 के लोकसभा चुनाव तक पवार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे और लोकसभा चुनाव में जीत के बाद उन्होंने विधानसभा सदस्य से त्यागपत्र दे दिया. 1998 के मध्यावधि चुनाव में पवार के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी और उसके सहयोगी दलों ने महाराष्ट्र में 48 सीटों में से 37 लोकसभा सीटों पर कब्ज़ा जमाया और वे 12वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता चुने गए.
1999 में जब 12वीं लोकसभा भंग कर दी गयी और चुनाव की घोषणा हुई तब शरद पवार, तारिक अनवर और पी.ए.संगमा ने कांग्रेस में भारतीय उम्मीदवार के प्रधानमंत्री बनने की आवाज उठाई. इस समय पार्टी की बागड़ोर सोनिया गांधी के हाथ में थी और उनका प्रधानमंत्री का दावेदार बनना तय लग रहा था. सोनिया गांधी पर सवाल उठाने के चलते शरद पवार को पार्टी से निष्काषित कर दिया गया. उसके बाद इन तीनों नेताओं ने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की. उनकी पार्टी ने पहले साल में ही कमाल कर दिया और तीनों प्रमुख पार्टियों के वोट बैंक में सेंघ लगाने में सफल रही. शरद पवार की किस्मत इतनी बुलंद रही कि 1999 के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और एनसीपी ने कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली.
उसके बाद अगले 15 साल यानि 1999 से 2014 तक कांग्रेस और एनसीपी की गठबंधन सरकार ही सत्ता पर काबिज रही और विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे, अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण ने अलग अलग समय पर मुख्यमंत्री की बागड़ोर संभाली. 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद पवार यूपीए गठबंधन सरकार में शामिल हुए और उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया. 2012 में उन्होंने चुनाव न लड़ने का ऐलान किया ताकि युवा चेहरों को मौका मिल सके लेकिन राजनीति में हमेशा मजबूत पिलर बनकर सक्रिय रहे.
शरद पवार का चुनाव न लड़ना शायद विपक्ष के लिए फायदेमंद रहा और 2014 से 2019 तक शिवसेना-बीजेपी की गठबंधन सरकार प्रदेश की सत्ता में रही. हाल में हुए महाराष्ट्र चुनावों में बीजेपी और शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री पद के बंटवारे को लेकर हुए मतभेद के चलते राष्ट्रपति शासन लग गया. कांग्रेस और एनसीपी दोनों के पास ही बहुमत नहीं था. अचानक राजनीति ने ऐसी करवट बदली कि शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने पिछले सरकार में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से हाथ मिला भाजपा-एनसीपी की सरकार बना ली लेकिन पवार के बुलावे पर सभी विधायकों सहित अजित पवार भी वापिस आ गए और उसके बाद शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर सरकार बनाई. महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो हैं राजनीति के असल चाणक्य शरद पवार, जिनकी कुटिल राजनीति की एक गुगली ने आज के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह, पीएम नरेंद्र मोदी और देवेंद्र फडणवीस तीनों को क्लीन बोल्ड कर दिया.