World Tourism Day: जयपुर का आमेर का किला – भव्यता की मिसाल, ये नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा
- आमेर किला का राजस्थान में सबसे बडे किलों में से एक है, बाहर से देखने पर ये एक चट्टानी किला लगता है लेकिन इंटीरियर में इसके निर्माण में चार चाँद लगे हुए है…
NewsBreatheTeam. आज विश्व टूरिज्म दिवस (world Tourism Day 2022) है। इस मौके पर विशेष जयपुर की विरासत लेकर आपके लिए लाए हैं। गुलाबी नगरी के नाम से मशहूर और सैंकड़ों सालों पुराने अत्याधिक मंदिरों के कारण छोटी काशी माने जाने वाला जयपुर राजस्थान की राजधानी है. यहां बहुत से ऐतिहासिक किले और स्मारक हैं. जयपुर में कुछ प्रमुख ऐतिहासिक स्थानों में आमेर किला, जयगढ़ किला, नाहरगढ़ किला, सिटी पैलेस, हवा महल (जिसे पैलेस ऑफ विंड भी कहते हैं), जल महल, रामबाग महल और अल्बर्ट हॉल आदि शामिल हैं. लेकिन जिसे जयपुर की विरासत जाननी है, उसके लिए आमेर का किला या आंबेर का किला जरूर देखना चाहिए.
भारत के पश्चिमी राज्य राजस्थान की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित एक पर्वतीय दुर्ग है. यह जयपुर नगर का प्रधान पर्यटक आकर्षण है. आमेर का कस्बा मूल रूप से स्थानीय मीणाओं द्वारा बसाया गया था. बाद में कछवाहा राजपूत मान सिंह प्रथम ने आमेर पर राज किया व आमेर के दुर्ग का निर्माण करवाया.
अम्बर या आमेर शब्द मां अंबा देवी से लिया गया है जो आमेर के कछवाहा परिवार की कुल देवी के तौर पर पूजी जाती है. आमेर के किले में माता का एक भव्य मंदिर भी है जहां नवरात्र में हजारों की संख्या में श्रद्धालू देखने आते हैं.
आमेर का किला अपने बड़े प्रांगण, तंग रास्तों और कई फाटकों के साथ, चित्रकारी की हिंदू शैली में बनाई कलाकृतियों के लिए जाना जाता है. यह मुगल और राजपूत वास्तुकला का समावेश है जिसे बनाने के लिए संगमरमर और लाल पत्थरों का प्रयोग हुआ है. आमेर किले के नीचे स्थित माहोठा झील इस जगह की खूबसूरती में चार चांद लगाती है.
आमेर किला राजस्थान में सबसे बडे किलों में से एक है और इसकी भव्य स्थापत्य कला समृद्ध अतीत का एक प्रतीक है. आमेर राजस्थान राज्य का एक शहर है और यह अब यह जयपुर नगर निगम का हिस्सा है. यह 1727 तक कछवाहा राजपूतों की राजधानी थी. आमेर किले को बाहर से देखने पर ये एक चट्टानी किला लगता है लेकिन इंटीरियर में इसके निर्माण में चार चाँद लगे हुए है. इसमें विशाल हॉल, शाही ढंग से डिजाइन किए गए महल, सुंदर मंदिर और बहुत खूबसूरत हरी घास का उद्यान शामिल है. किले की वास्तुकला हिंदू और मुगल शैली का सही संयोजन है. अंदरूनी काम को शानदार दर्पण, पेंटिंग और नक्काशियों के साथ सजाया गया है.
Read more: जमीं पर जन्नत से कम नहीं है कसौली, एक बार जरूर जाएं
किले के परिसर को लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से सजाया गया है. यहाँ विशिष्ट भवन और स्थल बने हैं जिसमें शामिल है – दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, शीश महल, जय मंदिर और सुख निवास.
चारों ओर से बड़ी चार दिवारी से घिरी चारदिवारी से ये स्थान घिरा हुआ है जहां आपको हाथी सवारी का लुफ्त उठाने का भी मौका मिलेगा. चैम्बर के चालीस खम्भों पर कीमती स्टॉन्स लगे है और पत्थरों पर विभिन्न सुंदर चित्रों की नक्काशी है. सुख निवास, दीवान-ए-आम के विपरीत दिशा में है जिसमे चंदन के दरवाजे है और जिन्हें हाथी दांत के साथ सजाया गया है. कहा जाता है कि राजा अपनी रानियों के साथ समय बिताने के लिए इस जगह का प्रयोग किया करते थे और यही कारण है कि इसे सुख निवास के रूप में जाना जाता है.
शीश महल आमेर किले का प्रसिद्ध आकर्षण है जिसमें कई दर्पण घर हैं. इस हॉल का निर्माण इस तरह से है कि जब भी प्रकाश की एक किरण महल में रोशनी करती है तो यहां स्थापित अन्य दर्पणों के साथ मिलकर वह पूरे हाल को प्राकृतिक प्रकाश से रोशन कर देती हैं. शीश महल की एक खासियत ये भी है कि यहां अंधेरे में एक मोमबत्ती ही पूरे हॉल को हल्का प्रकाश देने के लिए पर्याप्त है.
आमेर किले में और भी बहुत सी चीजें देखने लायक है. पुराने विशाल बर्तन, दरवाजे, औजार, संदूक, चबूतरे और विशाल खाली स्थान इस जगह की भव्यता की गाथा स्वयं कह देते हैं. आमेर महल के आगे और गांव में भी भव्य कारीगरी और अन्य राजसी वस्त्र, बर्तन और अन्य चीजें खरीददारी के लिए मिल जाएंगी. आमेर से एक किमी. आगे ही सागर है जो वक्त बिताने के लिए अच्छी जगह है. आमेर से पहले नाहरगढ़ है जहां सबसे पहले सूर्य उगता हुआ देखने हर रोज सैंकड़ों की संख्या में लोग आते हैं.