हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया… ताउम्र जवां रहा ये सितारा

  • 60 के दशक में देव साहब की दीवानगी पूरे देश में इतनी अधिक बढ़ गई कि सरकार को उनके काले कपड़े पहनने पर ही बैन लगाना पड़ा था,  26 सितंबर, 1923 को जन्में देवानंद को आज याद कर रहे हैं देशभर में सिनेमा प्रेमी और उनके प्रशंसक

NewsBreathe/Team. हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया… कहने वाला हिंदी सिनेमा का एक सितारा 88 साल बाद दुनिया से रूख्सत होने तक ताउम्र जवां रहा. वो सितारा है देवानंद साहब. उनकी पर्सनल जिंदगी हो या फिल्मी, ताउम्र जवां रही. उनका अंदाज-अदाएं, जोश और स्टाइल हमेशा जवान ही दिखाई दीं. सदाबहार और एवरग्रीन सिनेमाई जादूगर देवानंद का आज जन्मदिन है. 26 सितंबर, 1923 को जन्में देवानंद को आज देशभर में सिनेमा प्रेमी और उनके प्रशंसक याद कर रहे हैं. देवानंद साहब 3 दिसम्बर, 2011 में इस दुनिया से रूख्सत हो गए.

बॉलीवुड के सबसे पहले रोमांटिक हीरो देवानंद एक ऐसे कलाकार थे जो अपने रोमानी अंदाज के चलते लड़कियों के दिलों में बसते थे. देवानंद जितना अपनी दिलकश अदाओं के लिए हसीनाओं के चहेते थे उतना ही अपने रोमांस को लेकर भी वो सुर्खियों में रहते थे. जब-जब देवानंद फिल्मी पर्दे पर आते, दर्शकों में एक अलग रोमांच पैदा कर देता था. उनका पहनावा, चलने का अंदाज, हेयर स्टाइल और उनके बोलने का तरीका सिनेमा प्रेमियों में अनूठा छाप छोड़ता गया. 60 के दशक में उनकी दीवानगी पूरे देश में इतनी अधिक बढ़ गई कि सरकार को उनके काले कपड़े पहनने पर ही बैन लगाना पड़ा था. देवानंद ने हमेशा अपने आपको जवान रखा तभी सदाबहार या एवरग्रीन जैसे उनके नाम के साथ ही जुड़ गया था.

देव साहब आज हमारे बीच भले ही नहीं है पर फिल्म इंडस्ट्रीज उनके योगदान को कभी भुला नहीं पाएगी. उनके स्टारडम की कहानी भले ही ब्लैक एंड व्हाइट के दौर में शुरू हुई लेकिन उनकी जिंदगी में रंगों की कमी कभी नहीं रही.

देवानंद की जिद्दी (1948), बाजी (1951), टैक्सी ड्राइवर (1954), नौ दो ग्यारह (1957), पेइंग गेस्ट, कालापानी (1958), हम दोनों (1961), तेरे घर के सामने (1963) और जॉनी मेरा नाम (1970), ज्वैलर थीफ, हरे रामा हरे कृष्णा, हीरा पन्ना (1973) जैसी सुपरहिट फिल्मों ने देवानंद को फिल्म इंडस्ट्रीज का पहला सुपरस्टार बना दिया और वे एवरग्रीन एक्टर बन गए.

एक बार देव साहब ने कहा था, ‘मैं सिनेमा में सोता हूं, सिनेमा में जागता हूं और सिनेमा ही मेरी जिंदगी है. मैं मरते दम तक सिनेमा की वजह से ही जवान रहूंगा,’ वे इसे साबित भी कर गए. 1973 में ‘हरे रामा हरे कृष्णा‘ में देवानंद ने जीनत अमान को डेब्यू कराया था. ऐसे ही 1980 में फिल्म ‘मनपसंद ‘ में टीना मुनीम के साथ हीरो थे. टीना को भी देवानंद ने ही डेब्यू कराया था. कभी भी उन्होंने अपनी उम्र को आड़े नहीं आने दिया.

देव आनंद के अधूरे इश्क की कहानी भी उनकी तरह ही खूबसूरत है. देव आनंद का पहला प्यार अभिनेत्री सुरैया थीं. फिल्म ‘विद्या‘ की शूटिंग के दौरान सुरैया पानी में डूब रही थीं और देवानंद ने अपनी जान पर खेल कर उन्हें बचाया था और यहीं से इस प्रेम कहानी की शुरुआत हुई. बाद में फिल्म ‘जीत‘ के सेट पर देव साहब ने सुरैया को तीन हजार रुपये की हीरे की अंगूठी के साथ प्रपोज भी किया था. लेकिन सुरैया की नानी, जिन्हें को ये रिश्ता कतई मंजूर नहीं था. वजह थी दोनों के धर्म, देवानंद हिंदू थे और सुरैया मुस्लिम.

सुरैया की नानी और घरवालों की नामंजूरी की वजह से सुरैया ने देवानंद से शादी के लिए मना कर दिया और दोनों को अलग होना पड़ा. इसके बाद सुरैया ने कभी शादी नहीं की और देव की यादों में ही खोई रहीं और दोनों का प्यार परवान चढ़ने से पहले ही दोनों की मोहब्बत अधूरी रही.

देवानंद का पहला प्यार अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सका. देवानंद को दुनिया ने कभी दुखी नहीं देखा. उनका कहना था “जो हो गया सो हो गया, हमेशा आगे की सोचते रहो.” उनके दिलो-दिमाग में केवल काम का ही जुनून सवार रहता था. वे मरते दम तक सिनेमा के लिए ही काम करते रहे. देवआनंद ने 3 दिसंबर, 2011 को 88 की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया.

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