एक शख्स जिसने अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया.. मेरी कलम से
न्यूज़ ब्रीथ। एक ऐसा शख्स जिसने मुझे अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया, साइकिल पर बिठाकर मेला दिखाने ले गया, भीड़ हुई तो कंधे पर बिठाया ताकि मैं वहां चल रहा सर्कस देख सकूं, दूकान पर ले जाकर केवल ये पूछा कि बताओ बेटा तुम्हे क्या चाहिए… वो हैं मेरे पापा. आज फायर्स डे हैं तो यूं ही अनायास लगा कि आप उन्हें हर बात के लिए थैंक्यू कहना चाहिए क्योंकि कितनी भी कोशिश क्यूं न कर लो, पापाओं को थैंक्यू बोलना काफी मुश्किल है खासतौर पर मिडिल क्लास फैमेली में, जहां आम तौर पर पिताओं का खौफ दिखता है. खैर…अपनी ही बात करता हूं, वो उनका साइकिल की आगे की छोटी सीट पर बैठाकर स्कूल छोड़ने जाना, प्रोजेक्ट फाइल में पत्ते तोड़कर फाइल तैयार करना, स्कूल गेट पर नेकटाई ठीक करना और फिर हल्की की स्माइल देना…बताने को काफी कुछ है.
अधिकांश उन्हें सफेद कपड़ों में ही देखा. व्हाईट पेंट, व्हाईट शर्ट और शाइन करते हुए जूते. सर्दियों में महाराणा प्रताप स्टाइल वाला उपर से नीचे तक नीले कलर का सूट और उनकी साइकिल, जो उन्हें जान से भी ज्यादा प्यारी थी. 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन डांट डांटकर बैंक फंक्शन में ले जाना और फिर हांफते हुए चढ़ाई में साइकिल चढ़ाना और फिर खुद उतर कर साइकिल को खींचना. उनके माथे पर आया पसीना उनकी मेहनत और हमारे लिए उनके प्यार की कहानी साफ और स्पष्ट शब्दों में बयां करता था लेकिन तब इतनी समझ कहां थी.
नए स्कूल के एडमिशन में घंटों लाइन में लगकर फार्म लेना और फिर फीस के पैसों के लिए परेशान होते देखा है मैंने. फिर पैसों को थूंक लगाकर गिनते और हमारी तरफ देखते हुए फिर एक स्माइल देकर लाइन में लगते और दिमाग में हमारे लिए सपने देखते हुए भी देखा है लेकिन तब इतनी समझ कहां थी.
चांदपोल के सबसे पुराने शू मार्केट में फुट्टों पर पैर का निशान लेने वाला वो बुढ्ढा सा आदमी अब तक याद है. वहां जाकर ‘अच्छे से बनाना’ कहने वाले पापा और ‘मैने तो अभी लिए थे, ये तो अभी चलेंगे, अगली बार आउंगा तो बनवा लूंगा’ कहने वाले पापाजी का वो चेहरा अभी तक भी याद है लेकिन तब इतनी समझ कहां थी.
कोई सिगरेट नहीं, तंबाकू नहीं, शराब नहीं लेकिन मेहनत का नशा हमेशा देखा है उनकी आंखों में, जो हर नशे से ज्यादा नशीला है. काश वो नशा हमने भी किया होता तो शायद जिंदगी कुछ और ही होती. हर बात के लिए उनका थैंक्यू कहने का दिल करता है लेकिन आज 30 साल बाद भी हिम्मत नहीं होती. हां, इतना अंतर जरुर आ गया है कि पहले सामने तक आने में डर लगता है लेकिन आज बात करने लायक हिम्मत हो गई है लेकिन अभी तक जो नहीं बदला वो है उनका प्यार और उनकी स्माइल.
घर की तीन शादियां करने के बाद भी उस शख्स की आदत और मेहनत करने का जज्बा 60 साल की उम्र में भी बरकरार है. आज भी पहले की तरह 8:40 बजे उनका किचन के पास खाने के लिए बैठना शायद वैसा ही हो, उनकी वो पेंट की चैन न बंद करने की आदत और फिर हमारा उनको बताना, उनका जीभ निकालकर बैल्ट लगाना और घर से निकलने से पहले एक बार पीछे मुड़कर देखना.. काफी कुछ धुंधला धुंधला सा याद है जो 10 साल पहले की यादें में ले जाता है.
डांटते थे लेकिन प्यार भी करते थे पर जताया कभी नहीं. अब पुरानी बातें याद करते हैं तो सब कुछ याद आता है उनका डांटना भी, ध्यान रखना भी और छोटे भाई को रैकिट से फेंककर मारना भी.
छोटी बहिन की शादी में जब सब सजने में बिजी थे तो जो कपड़े सुबह से पहन रखे हैं, उन्हीं कपड़ों पर नया सूट पहनकर जब गार्डन में घूम रहे थे तो एक बार तो हंसी ही निकल गई और दूसरे ही पल उनके सीधेपन पर गर्व भी हुआ. हर चीज पर बारिकी से नजर रखना और तैयारियों से ज्यादा हलवाईयों के पास बैठकर गप्पे लगाना उनकी कई आदतें आज भी याद हैं.
हमसे ज्यादा लाड़ली उनकी दोनों बेटियां भी अब घर से विदा हो चुकी हैं. अकेलेपन का कोई साथी अब बचा है तो वो है मम्मी लेकिन हर बार पापा का ये कहना ‘मशीन तो लगा लो जी पहले, बस हां हां करना आता है’ अब भी याद आता है तो हंसी छूट जाती है.
खैर…इतना सब कुछ है याद करने को कि जिसका कोई अंत नहीं. इन सभी बातों के लिए, हमें इतना बड़ा करने के लिए और हर उस बात के लिए जिसके लिए कहना चाहिए, थैंक्यू बोलता हूं. कहना चाहता हूं कि पापाजी, आज भी ये सब कहने की हिम्मत मुझमे है और ना ही कभी होगी लेकिन शब्दों के लिए बस अपने मन को हल्का करना चाहता हूं ताकि जो एक गलती अनजाने में या जान बूझकर हो गई है, उसका बोझ कुछ हल्का हो जाए.
अंत में कहना यही चाहूंगा कि आपको अपने बच्चों पर गर्व हो न हो लेकिन हमें अपने पापा पर बहुत गर्व है. आपने हमें उस वक्त भी किसी चीज की कमी नहीं होने दी, जब आप प्रोब्लम में थे. हमें छत दी, नाम दिया, प्यार दिया.. उन सब के लिए थैंक यू सो मच. अगर धरती पर भगवान है तो शायद आपसे बेहतर नहीं होगा.
हैप्पी फादर्स डे पापा..