आडवाणी-जोशी बने जहर का घूठ, न निगलते बने न थूकते
‘रूठे-रूठे पिया, मनाउ कैसे’ शायद यही गाना अमित शाह और भाजपा आलाकमान के दिलोदिमाग में गूंज रहा होगा. स्थिति भी कुछ ऐसी ही है. बीजेपी ने अपने कहे अनुसार करीब-करीब सभी 75 पार नेताओं के टिकट काट उन्हें घर बिठा दिया है. इन वरिष्ठ नेताओं में लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के नाम सबसे आगे हैं. वन मैन आर्मी कहलाई जाने वाली बीजेपी के कदम यहां ही नहीं थमें, उन्होंने भाजपा के संकल्प पत्र यानि चुनावी घोषणा पत्र पर भी वायपेयी सहित किसी भी वरिष्ठ भाजपाई की फोटो तक लगाना उचिन नहीं समझा और न ही उन्हें मंच पर आमंत्रित किया. संकल्प पत्र पर केवल नरेंद्र मोदी की फोटो है. ऐसे में पार्टी के ये बुढ़े हो चुके बरगद के पेड़ गुस्सा गए हैं. उन्होंने कार्यक्रम में भाग तक नहीं लिया.
अब इन नेताओं ने पार्टी को 50 सालों से भी ज्यादा दिए हैं तो इनकी अपनी अलग एक पैठ है जो जनता के मन में बसी है. यह बात भाजपा के सेनापति अमित शाह को भी अच्छी तरह से पता है. अब पार्टी ने इन सभी को मनाने के लिए मानमुनहार शुरू कर दी है. आडवाणी की बेटी को टिकट की पेशकश इसी कड़ी का एक हिस्सा है. मुरली मनोहर जोशी के भी परिवारजन को टिकट देने की कोशिश चल रही है. सुषमा स्वराज ने स्वास्थ्य के चलते जबकि उमा भारती ने खुद चुनाव लड़ने से मना कर दिया. पार्टी ने उमा भारती को पार्टी उपाध्यक्ष का पद दे दिया. लेकिन पता चला है कि दोनों ने केवल आलाकमान के कहने पर ऐसा किया है. ऐसा ही कुछ जोशी और आडवाणी के साथ भी हुआ है. सेनापति के सिपेसालार इन सभी के पास पहुंचे हैं और हाईकमाल के निर्णय से अवगत कराया है.
लेकिन यह बात तो माननी पड़ेगी कि आडवाणी और जोशी जैसे वरिष्ठ भाजपायी जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसी छवि पार्टी में रखते हैं, को आलाकमाल का यह निर्णय पच नहीं रहा. हालांकि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले तक आलाकमाल में इन नेताओं का फैसला अंगद के पांव की तरह था लेकिन सत्ता हासिल होते ही इन सभी बुजुर्ग नेताओं को केवल सलाहकार के तौर पर एक कोने में बिठा दिया. भाजपा का इन नेताओं के साथ ऐसा करना जनता को भी रास नहीं आ रहा. यही वजह है कि यह पार्टी के लिए एक ऐसा जहर भरा घूठ बन गया है जो न निगलते बन रहा है और न ही थूकते. ऐसे में मानमनुहार का यह दौर कितना लंबा चलेगा, यह बता पाना थोड़ा मुश्किल है.