मान्यवर, सरकारी कर्मचारियों के साथ प्राइवेट सेक्टर के बारे में भी जरा सोचिए!
सरकार लगातार डीए बढ़ा रही, दूसरी तरफ 6 हजार की नौकरी ढूंढ़ रहे इंजीनियर्स-डिग्रीधारी
हाल ही में पहले केन्द्र सरकार और उसके तुरंत बाद राजस्थान सरकार ने सरकारी कर्मचारियों व पेंषनरों का महंगाई भत्ता (डीए) 3 फीसदी बढ़ाया है। अब डीए 9 फीसदी से बढ़कर 12 फीसदी हो गया है जिसका फायदा केन्द्र के 1.1 करोड़ और राज्य सरकार के 11.5 लाख सरकारी कर्मचारियों एवं पेंषनरों को मिलेगा। देश में महंगाई जिस तरह से बढ़ रही है, उसके मुताबिक महंगाई भत्ता बढ़ना भी चाहिए, इसमें कुछ गलत नहीं है, लेकिन हमारा आग्रह केन्द्र-राज्य सरकारों से हैं कि सरकारी के साथ प्राइवेट सेक्टर की तरफ भी जरा गौर फरमाने का कष्ट करें। एक और सरकारी सेक्टर है जहां सैलेरी की शुरूआत ही 30-35 हजार रुपए से होती है। उसके बाद डीए व अन्य भत्ते मिलाकर यह 40 के पार जाती है, वेतन आयोग की सिफारिसें अलग से। दूसरी ओर प्राइवेट सेक्टर है जहां एक अच्छे कॉलेज से निकला इंजीनियर भी हाई क्लास डिग्री लिए केवल 6 हजार रुपए की जॉब करने को भी तैयार है।
यह बात सच है कि जिस तेजी से जनसंख्या बढ़ रही है, चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार, उसके मुताबिक नौकरियां उपलब्ध नहीं करा सकती। लेकिन यह भी सरकार का ही फर्ज है कि युवाओं को सरकारी नहीं तो प्राइवेट सेक्टर में भी रोजगार के अवसर मुहैया कराए जाएं। जब चुनाव सिर पर होते हैं तब सरकारें दुनिया में सबसे अधिक युवा शक्ति देश में होने पर गर्व करती हैं लेकिन जब बात आती है रोजगार की तो उस समय नेता हो या सरकार, सब मुंह बायें पीठ दिखाकर भाग खड़ी होती हैं। कई लोगों को कहते सुना है कि प्राइवेट जॉब में बहुत पैसा है जबकि सरकारी में केवल सैलेरी लेकिन यह भी एक बयाभह सच्चाई है कि आज का हाई प्रोफाइल युवा केवल उतने पैसों में किसी की गुलामी करने को तैयार बैठा है जितनी तनख्वाह एक मजदूर की होती है। आज का एक मजदूर प्रतिदिन 700-1000 रुपए की मजदूरी लेता है जो करीब 21-30 हजार रुपए महीना होती है लेकिन किसी ठीक-ठाक ऑफिस में जाकर देखें तो यहां तनख्वाह 6-8 हजार रुपए से शुरू होती है और इस सैलेरी पर कोई न कोई डिग्रीधारी ही बैठा होगा, यह हमारा दावा है। इसके दूसरी ओर एक सरकारी पद पर बैठा हर आदमी सबसे पहले फ्रेशर होता है लेकिन फिर भी तनख्वाह 40 हजार रुपया महीना प्राप्त करता है।
हालांकि देश में बड़े ऑफिस थोड़े कम है और उनमें जो भी बैठे हैं, अपनी सीट कभी नहीं छोड़ना चाहते। शेष छोटे-छोटे स्टार्टअप्स के चलते लाखों युवा अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं लेकिन 2 साल पहले हुई नोटबंदी ने उन युवाओं की यह नौकरी भी छीन ली। छोटे स्टार्टअप्स नोटबंदी के बोझ तले ऐसे दबे कि कभी उठ ही नहीं सके और जो बंद न हो सके, वो अपने शटर डाउन करने की तैयारी में हैं। सरकार का यह कदम चाहें कितना भी अच्छे कार्य के लिए किया गया हो लेकिन सच तो यह है कि सरकार के इस आत्मघाती फैसले के चलते लाखों युवा अपनी नौकरियों से हाथ धो बैठे। सरकार के इस निर्णय से बेरोजगार हुए लोगों का जमकर फायदा सरकारी दया पर चलते इन्हीं बड़े और आलिशान आॅफिसों ने उठाया और अपने सैलेरी क्राइटेरिए को और कम कर दिया जिससे इन युवाओं को दोहरी मार पड़ रही है। असर पूरे देश पर ऐसा हुआ कि न तो भ्रष्टाचार कम हुआ और न ही काला धन वापिस आया लेकिन मध्यम क्लास भूखे मरने पर मजबूर जरूर हो गया है।
ऐसे में हमारा तो सरकार से यही कहना है कि बेशक आप अपने सिपेसालार सरकारी मुलाजिमों के डीए चाहे जितना बढ़ाएं लेकिन कृपा करते प्राइवेट सेक्टर की ओर भी थोड़ा ध्यान दें। यहां जितनी सैलरी अंतर है, वह शायद कहीं ओर हो भी नहीं सकता। कृप्या देष की मध्यम श्रेणी की जनता पर थोड़ा तरस खाएं और इस बात पर गौर फरमाएं। अगर जल्द ध्यान न दिया गया तो कहीं ऐसा न हो जाए कि देष के माथे पर सबसे ज्यादा युवा बल के साथ सबसे अधिक बेरोजगारी का तमगा भी लग जाए।