फिल्म रिव्यूः महाराष्ट्र तक ही सीमित रह गया ‘ठाकरे’ का जादू
फिल्मः ठाकरे (बायोपिक)
स्टार कास्टः नावाजुद्दीन सिद्ीकी, अमृता राव, सुधीर मिश्रा, अब्दुल कादिर, अनुष्का जाधव, सतीश अलेकर
डायरेक्टरः अभिजीत पानसे
प्रोड्यूसरः वायाकॉम 18 मोशन पिक्चर्स
म्यूजिकः रोहन-रोहन, संदीप शिरोडकर
समयः 139 मिनिट
खासः फिल्म ने पहले दिन 6 करोड़ की ओपनिंग ली है।
शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे की जिंदगी पर आधारिक नवाजुद्दीन स्टारर फिल्म ‘ठाकरे’ 90 के दशक में बाबरी मस्जिद ढहाने के मुद्दे पर आधारित है। इस फिल्म में बालासाहेब के जवानी से लेकर बुढ़ापे तक का आदर्श सफर दिखाया गया है लेकिन नवाजुद्दीन इस किरदार में वो जान नहीं फूंक पाए जिनके लिए उन्हें जाना जाता है। वैसे इस फिल्म में एक फ्री प्रेस एक्सप्रेस में बतौर कार्टूनिस्ट से अपने कैरियर का आरंभ करने से लेकर एक निडर पॉलिटिशियन बनने और उसके बाद शिवसेना का गठन एवं उसका प्रसार करने तक पूरा फ्लैशबैक दिखाया गया है लेकिन यह कहानी मुख्यतय महाराष्ट्र सहित उन इलाकों में सीमित कर रह गया है जहां शिवसेना का बाहुल्य है।
इस फिल्म में ठाकरे साहेब के कई दंगों में संदिग्ध भूमिका का भी जिक्र है। कुछ डायलॉग्स काफी दमदार है। ‘मैंने हमेशा से देश को पहले रखा, इसलिए मैं जय महाराष्ट्र से पहले जय हिंद कहता हूं’ और पाकिस्तान क्रिकेटर से कहा गया संवाद ‘आपका सिक्स इतना भी अच्छा नहीं कि मैं उसके लिए सीमा पर सेना के शहीदों की शहादत भूल जाउं’ तालियां बटोरने वाले रहे। कहानी को लेकर निर्देशक अभिजीत पानसे थोड़ा मात खा गए। उन्होंने ठाकरे साहेब के जिंदगी के उतार चढ़ाव वाले पलों को छुआ तो जरूर लेकिन इमोशन नहीं जगा सके। फिल्म में ठाकरे के अतीत वाले हिस्से ब्लैक एंड व्हाईट में बताए गए हैं जो रियल लगते हैं।
लंबे समय से फिल्मों में वापसी कर रही अमृता राव जो ठाकरे की पत्नी मीना ताई का रोल कर रही हैं, के लिए फिल्म में करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। सहयोगी कास्ट विषय के अनुरूप है। संगीत औसत है जो केवल फिल्म के मुताबिक ठीक है। अगर शिवसेना या बाल ठाकरे के अनुयायी हैं तो फिल्म एक बार देखी जा सकती है।