किसानों का जबरदस्त वार, चुपचाप मान जाए सरकार नहीं तो होगी तकरार
- किसान आंदोलन का 13वां दिन, 6 दौर की वार्ता विफल, किसानों ने ठुकराया सरकार का प्रस्ताव, किसान कानून वापस लेने पर और सरकार मनवाने पर अडी, किसानों ने दी जयपुर-दिल्ली हाईवे जाम करने की धमकी, सांसद हनुमान बेनीवाल ने भी भरी हुंकार, 12 दिसम्बर को किसानों के समर्थन में करेंगे दिल्ली कूच
NewsBreatheTeam. किसान आंदोलन का 13वां दिन, 6 दौर की वार्ता बेनतीजा और किसान-सरकार आमने सामने. सरकार लाख किसान आंदोलन (Farmers Protest) को विपक्षी दलों के भडकाने का नतीजे मानें लेकिन सच तो ये है कि तीनों नए कृषि कानून अब मोदी सरकार के गले का फंदा बन गए हैं. मोदी भक्त अभी भी यही मान रहे हैं कि ये सब किया धरा कांग्रेस और टुकडे टुकडे गैंग का है लेकिन लाखों किसानों का यूं सडकों पर आना और राजनैतिक नेताओं को किसानों द्वारा आंदोलन से प्रस्थान कराना कहानी तो कुछ और ही गढी जा रही है. सब कुछ वैसा नहीं है जो गोदी मीडिया द्वारा दिखाया जा रहा है, इसके पीछे काफी कुछ ऐसा है जो छिपाया जा रहा है. खैर, खास बात ये है कि केंद्र सरकार का दिया गया प्रस्ताव किसानों ने नामंजूर कर दिया है. किसानों ने तीनों कृषि कानूनों बिलों को वापिस लेने और एमएसपी का लिखित में आश्वासन की मांग पर जंग-ए-ऐलान कर दिया है.
एक प्रेस वार्ता कर किसानों ने साफ तौर पर ठीकरा अंबानी परिवार पर फोडा और तीनों कानून वापिस लिए जाने तक JIO की सभी चीजों का बहिष्कार करने का फैसला लिया. साथ ही 12 दिसम्बर तक दिल्ली-जयपुर हाईवे और जयपुर-आगरा-दिल्ली हाईवे को जाम करने का ऐलान कर दिया है. 12 दिसम्बर को एक दिन के लिए सभी टोल फ्री रखे गए हैं. इसके साथ ही 14 दिसम्बर को देशभर में सभी बीजेपी के विधायकों, मंत्री और सांसदों के घर व दफतरों का घेराव भी किया जाएगा. आंदोलन तेज किए जाने की बात भी कही जा रही है. इधर केंद्र सरकार अभी भी अपने फैसले पर अटल है और किसी भी तरह से अन्नदाताओं की बात मानने को तैयार नहीं है. दूसरे शब्दों में कहें तो लोकतंत का गला घोटने की कोशिश इस बात से की जा रही है कि समय के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा.
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राजस्थान की बात करें तो किसान नेता और रालोपा प्रमुख सांसद हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) ने भी कृषि कानून को लेकर अपने गठबंधन का नहीं बल्कि किसान भाईयों का पक्ष लिया है. हनुमान बेनीवाल ने एक वीडियो जारी कर कहा कि वे 12 दिसम्बर को किसान आंदोलन के पक्ष में कोटपूतली से दिल्ली की ओर सैंकडों की संख्या में कार्यकर्ताओं और राजस्थान के किसानों को लेकर दिल्ली की ओर कूच करेंगे.
उन्होंने ये भी कहा कि अगर एनडीए से गठबंधन तोडना भी पडे तो वे पीछे नहीं हटेंगे लेकिन किसान नेता होने के नाते वे किसानों की मांगों का समर्थन करेंगे. आइए जानते हैं नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने क्या कहा…
देश में किसानों से जुडा तबका किसानों का ही समर्थन कर रहा है लेकिन जैसा कि न्यूज ब्रीथ ने देखा, अभी भी आधे से ज्यादा लोग या यूं कहें अंध भक्त अभी भी केंद्र सरकार का ही समर्थन कर रहे हैं. उनका कहना है कि विपक्षी दल किसानों को भडकाने का काम कर रहे हैं और आंदोलन से लेकर भारत बंद तक सब उन्हीं का किया धरा है. दो चार हजार या 50 हजार भी होते तो ये बात समझ आ सकती थी लेकिन लाखों की संख्या में किसान सडकों पर हैं और केवल एक ही मांग पर अडे हैं, यहां किसी ओर की भूमिका समझ नहीं आती. हां, ये जरूर है कि कांग्रेस सहित अन्य दलों को जो करना चाहिए, वो मौका किसानों ने वैसे ही दे दिया.
बात रहीं आरोपों की तो राजनैतिक दल तो उलटा इस कानून को कमजोर करने की भूमिका अदा कर रहे हैं. भारत बंद में किसानों का समर्थन करने पहुंचे कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला को किसानों ने कार से नीचे तक नहीं उतरने दिया और वहीं से रवाना कर दिया. कोरोना काल में मजदूरों का हाल चाल जानने पहुंचे राहुल गांधी इस बार मैदान में नहीं आए क्योंकि यहां उनके साथ वो ही होता जो सुरजेवाला का हुआ है. अलबत्ता हरियाणा, मध्यप्रदेश जहां बीजेपी की सरकारे हैं, वहां भी प्रदर्शन हो रहे हैं जो साफ तौर पर जाहिर करते हैं कि ये आवाज केवल और केवल अन्नदाताओं की है और किसी की नहीं.
जाते जाते एक आखिरी बात और…
पहली बात- अगर सरकार कहती है कि पिछली सरकारों ने एमएसपी को केवल जुबानी आश्वासन में रखा तो केंद्र सरकार को बदलाव करते हुए लिखित में देने में क्या आपत्ति है अगर वे ये कहते हैं कि एमएसपी में कोई बदलाव नहीं होगा.
दूसरी बात- हरियाणा, मध्यप्रदेश और कर्नाटक की बीजेपी सरकारें बार बार यहीं कह रही हैं कि प्रदेश के किसानों के अलावा प्रदेश में किसी अन्य राज्यों के किसानों को फसलें बेचने नहीं दिया जाएगा. जबकि केंद्र सरकार ने अपने संशोधित बिल में साफ तौर पर कहा है कि किसी भी राज्य का किसान किसी भी अन्य राज्य में फसल बेचने के लिए स्वतंत है.
तीसरी और अंतिम बात- अगर किसान भाई कुछ बिन्दुओं पर संशोधन चाहते हैं तो सरकार केवल प्रस्ताव रखकर ये क्यों जताने का प्रत्यन्न कर रही है कि हमने जो किया है वो सही है और सभी के हित में है जबकि लाखों किसान जो कह रहे हैं वो केवल विपक्ष का एक एजेंडा है. खुद पीएम मोदी इस बार को कई बार कह चुके हैं. क्या उन्हें किसानों से वाद विवाद नहीं करना चाहिए. हमारा तो यही मानना है कि सभी के साथ मन की बात करने वाले प्रधानमंती नरेंद्र मोदी को किसानों के मन की बात भी माननी चाहिए.